पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५७५

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पछताय। रेवड़ी कड़ाका। पापड़ पड़ाका। ऐसी जात हलवाई जिसके छत्तिस कौम हैं भाई। जैसे कलकत्ते के विलसन मन्दिर के भितरिए, वैसे अंधेर नगर के हम। सब समान ताजा। खाजा ले खाजा। टके सेर खाजा।

कुजड़िन–– ले धनिया मेथी सोआ पालक चौराई बथुआ करेमूँ नोनियाँ कुलफा कसारी चना सरसों का साग। मरसा ले मरसा। ले बैंगन लौआ कोहड़ा आलू अरुई बण्डा नेनुआँ सूरन रामतरोई तोरई मुरई ले आदी मिरचा लहसुन पियाज टिकोरा। ले फालसा खिरनी आम अमरूत निबुआ मटर होरहा। जैसे काजी वैसे पाजी रैयत राजी टकेसेर भाजी। ले हिन्दुस्तान का मेवा फूट और बैर।

मुगल–– बादाम पिस्ते अखरोट अनार बिहीदाना मुनक्का किशमिश अंजीर आबजोश आलूबोखरा चिलगोजा सेव नाशपाती बिही सरदा अंगूर का पिटारी। आमारा ऐसा मुल्क जिसमें अंगरेज का भी दाँत खट्टा ओ गया। नाहक को रुपया खराब किया। हिन्दोस्तान का आदमी लक लक हमारे यहाँ का आदमी बुंबक बुंबक लो सब मेवा टके सेर।

पाचकवाला––

चूरन अमल बेद का भारी। जिस को खाते कृष्ण मुरारी॥
मेरा पाचक है पचलोना। जिको खाता श्याम सलोना॥
चूरन बना मसालेदार। जिसमें खट्टे की बहार॥
मेरा चूरन जो कोइ खाय। मुझको छोड़ कहीं नहिं जाय॥
हिन्दू चूरन इस का नाम। विलायत पूरन इस का काम॥
चूरन जब से हिन्द में आया। इसका धन बल सभी घटाया॥
चूरन ऐसा हट्टा कट्टा। कीना दाँत सभी का खट्टा॥
चूरन चला डाल की मंडी। इसको खाएँगी सब रंडी॥
चूरन अमले सब जो खावैं। दूनी रुशवत तुरत पचावैं॥
चूरन नाटकवाले खाते। इस की नकल पचा कर लाते॥
चूरन सभी महाजन खाते। जिससे जमा हजम कर जाते॥
चूरन खाते लाला लोग। जिनको अकिल अजीरन रोग॥
चूर खावै एडिटर जात। जिन के पेट पचै नहिं बात॥
चूरन साहेब लोग जो खाता। सारा हिंद हजम कर जाता॥
चूरन पूलिसवाले खाते। सब कानून हजम कर जाते॥
ले चूरन का ढेर, बेचा टके सेर॥

मछलीवाली–– मछरी ले मछरी।

मछरिया एक टके कै बिकाय।
लाख टका के वाला जोबन, गांहक सब ललचाय।
नैन मछरिया रूप जाल में, देखतही फंसि जाय।
बिनु पानी मछरी सो बिरहिया, मिले बिना अकुलाय।

जातवाला (ब्राह्मण)–– जात ले जात, टके से जात। एक टका दो, हम अभी अपनी जात बेचते हैं। टके के वास्ते ब्राह्मण से धोबी हो जायं और धोबी को ब्राह्मण कर दें, टके के वास्ते जैसी कहो वैसी व्यवस्था दें। टके के वास्ते झूठ को सच करैं। टके के वास्ते ब्राह्मण से मुसलमान, टके के वास्ते हिन्दू से क्रिस्तान। टके के वास्ते धर्म और प्रतिष्ठा दोनों बेचैं, टके के वास्ते झूठी गवाही दें। टके के वास्ते पाप को पुण्य मानैं, टके के वास्ते नीच को भी पितामह बनावैं। वेद धर्म्म कुल मरजादा सच्चाई बड़ाई सब टके सेर। लुटाय दिया अनमोल माल ले टके सेर।

बनियां–– आटा दाल लकड़ी नमक घी चीनी मसाला चावल ले टके सेर।

(बाबा जी का चेला गोबर्धनदास आता है और सब बेचनेवालों की आवाज सुन सुन कर खाने के आनन्द में बड़ा प्रसन्न होता है।)

गो.दा.–– क्यों भाई बणिये, आटा कितणे सेर?

बनियां–– टके सेर।

गो.दा.–– औ चावल?

बनियां–– टके सेर।

गो.दा.–– औ चीनी?

बनियां–– टके सेर।

गो.दा.–– औ घी?

बनियां–– टके सेर।

गो.दा.–– सब टके सेर से। सचमुच।

बनियां–– हां महाराज, क्या झूठ बोलूंगा।

गो.दा.–– (कुजड़िन के पास जाकर) क्यों भाई, भाजी क्या भाव?

कुजड़िन–– बाबा जी, टके सेर। निबुआ मुरई धनिया मिरचा साग सब टके सेर।

गो.दा.–– सब भाजी टके सेर। वाह वाह! बड़ा आनंद है। यहां सभी चीज टके सेर। (हलवाई के पास जाकर) क्यौं भाई हलवाई? मिठाई कितणे सेर?

हलवाई–– बाबा जी! लड़ुआ हलुआ जलेबी गुलाबजामुन खाजा सब टके सेर।

गो.दा.–– वाह! वाह!! बड़ा आनन्द है? क्यौं बच्चा, मुझसे मसखरी तो नहीं करता? सचमुच सब टके सेर?

हलवाई–– हां बाबा जी, शचमुच सब टके सेर। इस नगरी की चाल ही यही है। यहाँ सब चीज टके सेर बिकती है।

गो.दा.–– क्यौं बच्चा! इस नगरी का नाम क्या

अंधेर नगरी ५३१