पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/६४९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
    • zax

भोजदेव और माता का नाम रामादेवी था । इन्होंने किस समय अपने आविर्भाव से धरातल को भूषित किया था यह अब तक नहीं ज्ञात हुआ । श्रीयुक्त सनातन गोस्वामि ने लिखा है कि बंगाधिपति महाराज लक्ष्मणसेन की सभा में जयदेव जी विद्यमान थे । अनेक लोगों का यही मत है और इस मत को पोषण करने को लोग कहते हैं कि लक्ष्मणसेन के द्वार पर एक पत्थर खुदा हुआ लगा था, जिस पर यह श्लोक लिखा हुआ था "गोवनश्चशरणो जयदेव उमापति : । कविराजश्च रत्नानि समिती लक्ष्मणास्यच ।।" श्रीसनातन गोस्वामी के इस लेख पर अब तीन बातों का निर्णय करना आवश्यक हुआ । प्रथम यह कि "लाक्ष्मणेय" का काल क्या है । दूसरे यह कि यह लक्ष्मणसेन वही है जो बंगाले का प्रसिद्ध लक्ष्मणसेन हे कि दूसरा है। तीसरे यह कि यह बात अद्रेय है कि नहीं कि जयदेव जी लक्ष्मणसेन की सभा में थे। प्रसिद्ध इतिहास लेखकर मिनहाजिउद्दीन ने तबकाते नासिरी में लिखा है कि जब बख्तियार खिलजी ने बंगाल फतह किया तब लछमनिया नाम का राजा बंगाले में राज करता था । इन के मत से लछमनिया बंगदेश का अंतिम राजा था । किंतु बंगदेश के इतिहास से स्पष्ट है कि लछमनिया नाम का कोई भी राजा बंगाले में नहीं हुआ। लोग अनुमान करते हैं कि बल्लालसेन के पुत्र लक्ष्मणसेन के माधवसेन और केशवसेन "लादमणेय" इस शब्द के अपभ्रंश से लछमनिया लिखा है। राजशाही के जिले से मेटकाफ साहब को एक पत्थर पर खोदी हुई प्रशस्ति मिली है । यह प्रशस्ति विजयसेन राजा के समय में प्रद्युम्नेश्वर महादेव के मंदिर निर्माण के वर्णन में उमापतिधर की बनाई हुई है। डाक्टर राजेन्द्र लाल मित्र के मत से इस की संस्कृति की रचना प्रणाली नवम वा दशम वा एकादश शताब्दी की है । शोच की बात है कि इस प्रशस्ति में संवत नहीं दिया है, नहीं तो जयदेव जी के समय निरूपण में इतनी कठिनाई न पड़ती । इसमें हेमंतसेन, सुमंतसेन और वीरसेन यही तीन नाम विजयसेन के पूर्वपुरुषो के दिये है, जिससे प्रगट होता है कि वीरसेन ही वंशस्थापनकर्ता है। विजयसेन के विषय में यह लिखा है कि उस ने काम रूप और कुरुमंडल (मदास और पुरी के बीच का देश) जय किया था और पश्चिम जय करने को नौका पर गंगा के तट में सेना भेजी थी । तवारीखों में इन राजाओं का नाम कहीं नहीं है । कहते हैं आइनेअकबरी का सुखसेन (बल्लालसेन का पिता) विजयसेन का नामांतर है, क्योंकि बाकरगंज की प्रस्तरलिपि में जो चार नाम हैं वे विजयसेन, बल्लालसेन, लक्ष्मणसेन और केशवसेन इस क्रम से है। बल्लालसेन बड़ा पंडित था और दानसागर और वेदार्थ स्मृति संग्रह इत्यादि ग्रंथ उसके कारण बने । कुलीनों की प्रथा भी बल्लालसेन की स्थापित है। उसके पुत्र लक्ष्मणसेन के काल में भी संस्कृतविद्या की बड़ी उन्नति थी । भट्ट नारायण (वेणी संहार के कवि) के वंश में धनंजय के पुत्र हलायुध पंडित उसके दानाध्यक्ष थे, जिन्होंने ब्राह्मण सर्वस्व बनाया और इनक दूसरे भाई पशुपति भी बड़े स्मार्त आन्हिककार थे । कहते हैं कि गौड़ का नगर बल्लालसेन ने बसाया था. परंतु लक्ष्मणसेन के काल से उस का नाम लक्ष्मणावती (लखनौती) हुआ । लक्ष्मणसेन के पुत्र माधवसेन और केशवसेन थे । राजावली में इन के पीछे सुसेन वा शूरसेन और लिखा है और मुसलमान लेखको ने नौजीव (नवद्वीप ?). नारायण, लखमन और लखमनिया ये चार नाम और लिखे हैं वरच एक अशोकसेन भी लिखा है किंतु इन सबों का ठीक पता नहीं । मुसलमानों के मत से लखमनिया अंतिम राजा है, जिस ने ८० वर्ष राज्य किया और बखतियार के काल में जिसने राज्य छोड़ा ! यह गर्भ ही से राजा था । तो नाम का क्रम बीरसेन से लछमनिया तक एक प्रकार ठीक हो गया, किंतु इन का समय निर्णय अब भी न हुआ, क्योंकि किसी दानपत्र में संवत नहीं है । दानसागर के बनने का समय समय-प्रकाश के अनुसार १०१९ शके (१०७९ ई.) है । इस से बल्लालसेन का राजत्व ग्यारहवीं शताब्दी के अंत तक अनुमान होता है और यह आईनेअकबरी के समय से भी मेल खाता है । बल्लालसेन ने १०६६ में राज्य आरंभ किया था । तो अब सेनवंश का क्रम यो लिखा जा 1 सकता है १. बंबई की छपी हुई पुस्तक में राधा देवी जो इन की माता का नाम लिखा है वह असंगत है। हां, यामादेवी और रामादेवी यह दोनों पाठ अनेक हस्तलिखित पुस्तकों में मिलते हैं । रंगला में र और व में केवल एक बिन्दु के भेद होने के कारण यह भ्रम उपस्थित हुआ है। तरितावली ६०५