पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/६६८

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वालण्टेन साहेब महाशय ने सांख्यशास्त्राध्यापन के कार्य में इनको नियुक्त किया । उस कार्य पर अधिष्ठित होकर सपरिश्रम पाठन आदि में अनेक विद्यार्थियों को ऐसे व्युत्पन्न किया जिन की सभा में तत्काल अपूर्व कल्पनाओं को देख कर प्राचीन प्रतिष्ठित पंडित लोग प्रसन्न होकर श्लाघा करते थे । संवत १९२० के वर्ष में राजकीय श्री संस्कृत पाठशालाध्यक्ष श्रीमान् ग्रिफिथ साहेब महाशय ने इन को धर्मशास्त्राध्यापक का पद दिया । सब से बराबर पढ़ा पढ़ा कर शतावधि विद्यार्थियों को इन्होंने उत्तम पंडित किया, जो संप्रति देशदेशांतर में अपने अपने विद्यार्थिगण को पढ़ाकर इन की कीर्ति को आसमुद्रात फैला रहे हैं । कुछ दिन हुए श्रीमान् नंदन नगर की पाठशाला के संस्कृताध्यापक मोक्षमूलर साहिब महाशय की बनाई हुई अंगरेजी और संस्कृत व्याकरण की पुस्तक का परिशोधन और कई स्थलों में परिवर्तन किया था, जिससे उक्त साहिब महाशय ने अति प्रसन्न होकर इनकी कीर्ति अनेक द्वीपांतर निवासियों में विख्यात की, यहाँ तक कि जब उन्होंने अपने पुस्तक की द्वितीयावृत्ति छपवाई तब उस की भूमिका में लिखा है कि इन के समान संस्कृत व्याकरण जानने वाला इस द्वीप में तो क्या संसार भर में दूसरा कोई नहीं है । वे उक्त पंडित वर राजाराम शास्त्री संप्रति पाँच चार वर्ष से विरक्त हो कर योगाभ्यास में लगे थे और अपने दीन बांधवों का पोषण और दीन विद्यार्थी प्रभृति के परिपालन ही के हेतु अर्जन करते थे और आप साधारण ही वृत्ति से जीवन करते हुए मठ मेंनिवास करते थे । संवत १९३२ श्रावण शुक्ल १२ के दिन संन्यास लेकर उसी दिन से अन्न परित्याग पूर्वक परमार्थ का अनुसंधान करते करते मरण काल से अव्यवहित पूर्व तक सावधानता पूर्वक परमेश्वर का ध्यान करते करते भाद्रपद कृष्ण प्रात:काल ८ बजते बजते परमपद को प्राप्त हो कर यशोमात्रावशिष्ट रह गए। ३गुरुवार १४. लार्ड म्योसाहिबका जीवन चरित्र * हा ! यह कैसे दु:ख की बात है कि आज दिन हम उस के मरण का वृत्तात लिखते हैं जिस की भुजा की छाँह में सब प्रजा सुख से कालक्षेप करती थी और जो हम लोगों का पूरा हितकारी था । ऐसा कौन है इस को पढ़कर न कंपित होगा और परम शोक से किस की आँखों से आँसू न बहेंगे ? मनुष्य की कोई इच्छा पूरी नहीं होने पाती और ईश्वर और ही कुछ कर देता है । कहाँ युवराज के निरोग होने के आनंद में हम लोग मग्न थे और कैसे कैसे शुभ मनोरथ करते थे, कहाँ यह कैसा विज्जुपात सा हाहाकार सुनने में आया । निस्सन्देह भरतखंड के वृत्तांत में सर्वदा इस विषय को लोग बड़े आश्चर्य और शोक से पढ़ेंगे और निश्चय भूमि ने एक ऐसा अपूर्व स्वामी खो दिया है जैसा फिर आना कठिन है । तारीख १२ को यह भयानक समाचार कलकत्ते में आया और उसी समय सारा नगर शोकाक्रांत हो गया । गुरुवार ८वीं तारीख को श्रीमान लार्ड म्यौ साहिब पोर्ट ब्लेयर उपद्वीप में ग्लासगो नामक जहाज पर आए और ाका और नेमिसिस नाम के दो जहाज और भी संग आए और साढ़े नौ बजे उन टापुओं में पहुंचे और ग्यारह बारह के भीतर श्रीमान ने बर्मा के चीफ कमिश्नर इत्यादि लोगों के साथ कैदियों की बारक, गोराबारिक और दूसरे प्रसिद्ध स्थानों को देखा । उस समय श्रीमान की शरीर रक्षा के हेतु बहुत से सिपाही, कांस्टेब्ल और गार्ड बड़ी सावधानी से नियत किए गए और थोड़ी देर जेनरल स्टुअर्ट साहिब की कोठी पर ठहर कर सब लोग जहाजों को फिर गए । अढाई बजे सब लोग फिर उतरे और इन टापुओं के लोगों का स्वभाव जानकर सब लोग बड़ी सावधानी से चले और बड़े यत्न से सब लोग श्रीमान् की रक्षा करते रहे । उस समय श्रीमती लेडी म्यौ और सब स्त्रियाँ ग्लासगो जहाज पर ही थीं । ये लोग अबरदीन और ऐडो होते हुए बाइयर टापू में पहुँचे । यह स्थान रास के टापू से ढ़ाई कोस है और यहाँ १३०० कैदी रहते है, जो अपने बुरे कर्मों से काले पानी भेजे गए हैं। भय का स्थान समझ कर कास्टेबल और सरकारी पलटन रक्षा के हेतु संग हुई और जेलखाना इत्यादि स्थानों को देख कर चथाम टापू में गए और वहाँ कोयले की खान देख कर फिर जहाज पर फिर आने का विचार करने लगे । अब ५ बजने का समय आया और सब लोग जहाज पर जाने को घबड़ा रहे थे कि श्रीमान ने कहा कि हम लोग हिरात की पहाड़ी पर चढ़े और वहाँ सूर्यास्त की शोभा देखें । यह पहाड़ी इसी टापू में है और इसके ऊपर

  • शनिवार २४ फरवरी सन् १८७२ ई. कवि वचन सुधा जि. ३ सं. १३ में प्रकाशित (स.)

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