पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/६९९

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मि. चैत्र शुद्ध १ सं. १९८ विक्रम के लिखे सूत्रधार प्रवासी राय और ब्राह्मण ब्राह्ममय ने शुभ । (इस के आगे ये श्लोक लिखे हैं) ये सर्वेल्युविनः पार्थिवन्द्रानतेभ्यो भूयोयाचते रामचन्द्रः । सामान्योऽयं धर्मसेतुन॒राणां काले काले रक्षणीयो भवदिमः ॥ स्वदत्तां परदत्तां बा ब्रहमवृत्ति हरेत्त्युयः । षष्ठि वर्ष सहमाणि विष्टायां जायते क्रिमि: ॥ शुभम् श्री:॥ कन्नौज का दानपत्र यह दानपत्र राजा गोविन्दजचन्द्र कन्नौज के राजा का है जो दिल्ली के बादशाही खजाने से सिख लोग लाहौर लूट कर ले गए थे और अब श्री पंडित राधाकृष्ण चीफ पंडित लाहौर ने उस की एक प्रति हमारे पास भेजी है । इस राजवंश का पूर्व स्थापक गाहरवाल राजा था और करल्ल इस का अन्तिम राजकुमार हुआ । उसी वंश की एक शाखा महिआल में (वा महिआल का पुत्र) भोज हुआ जिसका काल ८८५ ईस्वी है । इन भोज और करल्ल की कीर्ति समाप्त होने के पीछे उसी वंश की शाखा में यशोविग्रह राजा हुआ उस का पुत्र महीचन्द्र, उस का पुत्र चन्द्रदेव, उसका पुत्र प्रदनपाल और उस मदनपाल का पुत्र गोविदचन्द्र था, जिस ने यह दान किया है । यह राजा ऐसा दानी था इसके दिये हुए गाँवों के शतावधि दानपत्र मिले हैं । ये लोग वैष्णव वा वैष्णवों के अनुयायी थे. क्योंकि इनके दानपत्रों पर गरुड़ का चिन्ह और गोविंदचन्द्र की मोहर पांचजन्य शंख है । 'अकुंठोत्कुंठ' यह श्लोक प्राय : दानपत्रों पर है । यह दानपत्र संवत ११८२ में माघ वदी ६ शुक्रवार को ग्रीवमती (१) तीर्थ में गंगा में स्नान कर के राजा गोविंदचन्द्र नो गौतम गोत्र के गौतमाडि.गरस मुन्द विप्रवर के ब्राह्मण ठक्कर अल्हन के पुत्र छीझट बाझठ दोनों भाइयों को हलद तालुके का गोउली नाम गाँव दिया है। स्वस्ति-- अकुण्ठोत्कुण्ठवैकुण्ठकण्ठलुउत्कर: । संरम्भः सुरतारम्भे सत्रियः श्रेषसे ऽस्तुवः ॥१॥ आसीदशीतति वंशजातक्ष्मापालमालासुदिवंगतातु। साक्षाधिव- स्वानिवभूरिधाम्ना नाम्ना यशोविग्रह इत्यदार: ॥२॥ तत्सतोऽभन्महीचन्द्रश्चन्द्र- धामनिमंनिजम् । येनापारमकूपर पारेव्यापारितंयशः ॥३॥ यस्य भूत्तनयोनयैक- रसिक: कातद्विषन्मण्डलो विध्वस्तोत्तवीरघोतिमिर: श्रीचन्द्रदेवदोनृपः । येनोदार तरप्रतापशमिताशेषप्रजोपद्रवम् श्रीमगाधिपुराधिराज्यमसमं दोर्विक्रमेणार्जितम् ॥४॥ तीर्थानि काशिकुशिकोत्तर कौशलेन्द्रस्थानीयकानि परिपालयताभिगम्य ॥ हेमात्म- तुल्यमनिशददता द्विजेभ्यो येनाकिता वसुमती शतशस्तुलाभिः ॥५॥ तस्यात्मजो- विजयपालइतिक्षितीन्द्रचूड़ामणिर्विज्ञायतेनिजगोजचन्द्रः । यस्याभिषेककलशोल्ल- सितैः पयोभिः प्रक्षालितंकलिरज: पटलं धरित्र्याः ॥६॥ यस्यासी विजयप्रयाण- समये तुंगाचलौच्चैश्चलमाद्यत्कुम्भिपदक्रमायमभरनस्यन्महीमण्डलम् । चुड़ारत्न विभिन्नतालुगलितसनासृगुइभासितः शेषः पेषवशादिवक्षणमसौजोडेनिली- शाननः ।।७॥ तस्मादजायत निजायत बाहुबन्लिवाद नवराज्य गणोनरेन्द्रः । सान्द्रा मृतद्रवमुचा प्रभवो गवां यो गोविन्दचन्द्राति चन्द्रइवाम्बुराशेः ॥८॥नकथामालमत्त- रक्षणक्षमास्तिमृयुदिक्षुगजानथवजिणः । कुकुभिवप्रभुरभुवल्लभ प्रतिभटाइव- यस्यघटागजा: ॥९॥ सोयं समस्तराजचक्रसंसेवितचरणा: परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर परममाहेश्वर निज भुजोपार्जित श्रीकान्यकुब्जाधिपत्य श्रीचन्द्रदेवपदानुयात परम भधारक महाराजाधिराज परमेश्वर परम माहेश्वराश्वपति गजपति नरपति राज्यपत्रयाधि विविध विद्याविचारवाचस्पतिः श्रीमद्गोविन्दचन्द्रदेवो विजयी पुरावृत्त संग्रह १५५