पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/७१०

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प्रबंध किया । महाराष्ट्रों का बल उस समय पूरा जमा हुआ था और हिंदुस्तान में ये लोग चारों ओर चढाइयां करते फिरते थे । दिल्ली के बादशाह तो मानो इन की कठपुतली था । नाना साहब से नागपुर के सरदार राघोजी भोंसला से कुछ वैमनस्य हो गया या, पर साहू राजा ने बीच में पड़ कर बिहार, अयोध्या और बंगाल का मरहटी अधिकार भोसला से छोड़वा कर आपस का द्वेष मिटा दिया । सन् १७४८ ई. में एक सौ चार वर्ष का होकर निज़मुलमुल्क मर गया । उस के पीछे बारह वर्ष तक उसका राज्य अव्यवस्थित रहा ; फिर उस के पुत्रों में से निज़ामअली नाम के एक मनुष्य ने वह राज्य पाया । रघुनाथ राव ने अटक से कटक तक हिंदुस्तान को दो बेर जीता, पर वहां का रुपया वसूल करना हुल्कर और संधिया के अधिकार में करके आप फिर आया । इसी अवसर में अहमदशाह अफगानों की बड़ी भारी फौज लेकर हिंदुस्तान में मराठों को जीतने के लिये आया । तब सदाशिव राव भाऊ और पेशवा का बड़ा लड़का विश्वास राव ये दोनों सेंधिया, हुल्कर. गाइकवाड़ और और और सर्दारों के साथ डेढ़ लाख पैदल, पचपन हजार सवार और दो सौ तोप की फौज से दिल्ली की ओर चले और सन् १७६० ई में जब मरहटों ने दिल्ली जीती थी तब से इन को बहुत सी फौज दिल्ली में भी थी सो वह फौज भी इन लोगों के साथ मिल गई, पर दो महीने पीछे इन के फौज में अनाज का ऐसा टोटा पड़ा कि मरहों से सिवा लड़ने के और कुछ न बन पड़ा । यह बड़ी लड़ाई पानीपत के मैदान में सन १७६१ ई. के जनवरी महीने की सातवी तारीख को हुइ । भाऊ निज़ाम अली के जीतने से ऐसा गर्वित हो रहा था कि इस लड़ाई को वह बडी असावधानी से लड़ा । जब उस ने सुना कि विश्वास राव बहुत जखमी हो गया है तब हाथी पर से उतर पड़ा और फिर उस का पता न लगा । जनको जी सेंघिया और इब्राहीम खाँ गारदी भी मारे गये और दूसरे भी अनेक बड़े बड़े सरदार मारे गये, और मरहटों की ऐसो भारी हार हुई कि सारे दक्सिन में सियापा पड़ गया । और नाना साहब को तो इस हार से ऐसी ग्लानि और दु:ख हुआ कि योड़े ही दिन पीछे परलोक सिधारे । इस मनुष्य के समय में जैसी पहिले महाराष्ट्रों वृद्धि हुई थी वैसाही एक साथ क्षय भी हो गया । सन् १७६१ में बालाजी बाजीराव उर्फ नाना साहेब के मरने पीछे उन का पुत्र पहिला माधवराव गद्दी पर बैठा । यह स्वभाव का न्यायी सूर धीर और दयालु था । मराठी राज से बेगार की चाल इस ने एक दम उठा दी थी और गरीबों के पालने से इस का चित्त बहुत ही बहलता था । नाना फडनवीस नाप्पक प्रसिद्ध मनुष्य इस का मुख्य वजीर था और मराठी राज्य की आमदनी इस के समय सात करोड़ रुपया थी । इसी के काल में हैदरअली ने मैसूर के राज की नेव दी थी । इस ने राघोबा दादा को कैद कर के पूने भेज दिया और आप न्याय और धर्म से ग्यारह बरस राज कर के अट्ठाईस बरस की अवस्था में क्षय रोग से मरा । इस के मरने के पीछे इस के भाई नारायण राव को गद्दी पर बैठाया. पर आठ ही महीने पीछे रघुनाथ राव ने उस को एक सूबेदार से मरवा डाला और आप गद्दी पर बैठा । इस से सब कारबारी इतने नाराज थे कि जब नारायण राव की स्त्री गंगाबाई (जो विधवा होने के समय गर्भवती थी) पुत्र जनी तो सवाई माधवराव के नाम से उस को राजा बना के उस के नाम की मुनादी फिरवा दी और नाना फड़नवीस सब काम काज करने लगा । गधोबा ने अंगरेजो से इस शर्त पर सहायता चाही कि साष्टीवेट, बसई गाँव और गुजरात के कुछ इलाके अँगरेज सरकार को दिये जाय, पर पोर्तुगीज और बादशाह के कलह से अंगरेजों ने आप ही वह बेट ले लिया और फिर कलकत्ते के गवर्नर के लिख अनुसार नाना फड़नवीस ने साष्टीवेट अंगरेजों को लिख दिया और कोपर गाँव में राघोबा को कुछ महीना कर के रख दिया । राघोबा दादा को बाजीराव, चिमना आप्पा और अमृतराव तीन पुत्र थे परंतु अमृतराव दत्तक थे । राघोबा का कई मनोरथ पूरा नहीं हुआ और सन् १७४८ में मर गया । नाना फड़नवीस से महाजी संधिया से कुछ लाग थी, इस से महाजी उस के ताबे कभी नहीं हुआ और सदा कुछ उत्पात करता रहा । नाना की फौज के हरिपंत फड़के और परशराम पत पट्टवर्दन ये दो बड़े सरदार थे ।सन् १७९५ में निजाम अली से महाराष्ट्र लोगों से एक लड़ाई. जिस में मरहटे जीते और अँगरेजों से भी तीन बरस तक कुछ कलह रही. पर फिर मेल हो गया । सन १७९६ में नाना फड़नवीस के वंश में रहने के दुख से माधव राव गिर के मर गया और राघोबा का बड़ा बेटा दूसरा बाजीराव पेशवा हुआ. पर इस से भी नाना फड़नवीस से खपपट चली ही गई । बाजीराव ने दौलतराव सेंधिया को उभारा और उस ने छल बल कर के नाना फड़नवीस को नगर के किले में कैद कर लिया, पर बाजीराव को उस के कैद से छुड़ा कर फिर से दीवान बनाना पड़ा, क्योंकि ऐसा चतुर मनुष्य उस काल में उस को दूसरा मिलना कठिन था । नाना फड़नवीस सन् १८०० में मर गया और मराठी राज्य की लक्ष्मी और बल भारतेन्दु समग्र ६६६