पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/७३७

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तृतीय अध्याय वाप्या और समर सिंह के मध्यवर्ती राजगण, वाप्पा का वंश, अरब जाति के भारतवर्ष-आक्रमण का विवरण, मुसलमानगण से जिन सब राजाओं ने चित्तौर नगर रक्षा' किया था उन लोगों की तालिका । ७८४ संवत में वाप्पा को चित्तौर सिंहासन प्राप्त हुआ था । मेवाड़ के इतिवृत्त में तत्परवर्ती प्रधान समय समर सिंह का राजत्व काल - संवत् १२४९ । अतएव याप्पा के ईरान राज्य-गमन के समय ८२० संवत से समर सिंह के समय पर्यंत भट्टाण के ग्रंथानुसार मेवाड़ राज्य का वृत्तान्त संप्रति प्रकटित होता है । समर सिंह का राजत्व काल केवल मेवाड़ के इतिवृत्ति का प्रधान काल नहीं, स्वरूपत : समुदया हिंदू जाति के पक्ष में एक प्रधान समय है। उनके राजत्व समय में भारतवर्ष का राज-किरीट हिंद के सिर से अपनीत देकर तातारी मुसलमान के सिर मे आरोपित हुआ था । वाप्पा के समर सिंह के मध्य चार शताब्दी काल का व्यवधान है। इस काल के मध्य में चित्तौर के सिंहासन पर अष्टादश राजाओं ने उपवेशन किया था । यदिच उन लोगों का राजत्व का विशेष विवरण प्राप्त नहीं होता, तो भी नितांत नीरव में तत्तावत् काल उल्लंघन करना उचित नहीं । उन सब राजा की लोहितवर्ण पताका सुवर्णमयी प्रतिमा से शोभमान चित्तौर के सौध शिखर पर उड्डीयमान थी और तन्मध्य में अनेक का नाम उन लोगों के राजस्थ शैल शरीर में लोह लेखनी की लिपि योग से अद्यावधि विद्यमान है। इस के पहिले आइतपुर की जिस खोदित लिपि का उल्लेख किया है, उस से वाप्पा और समर सिंह के मध्यवर्ती शक्तिकुमार राजा का राजत्व काल संवत १०२४ निरूपित हुआ । जैन ग्रंथ से ज्ञात होता है कि शक्तिकुमार के चार पुरुष पूर्ववर्ती उल्लत नाम राचा २२२ संवत में चित्तौर के सिंहासनारूढ़ हुए थे । ७६४ स्रष्टाब्द में वाप्पा ने ईरान देश में गमन किया । ११९३ स्रष्टाब्द में समर सिंह के समय में हिंदू राजत्व का अवसान हुआ । इस उभय घटना के मध्यवर्ती समय में मेवाड़ राज्य और एक बार मुसलमान गण से आक्रांत होने का विवरण राजवंश के ग्रंथ में प्राप्त होता है । तत्काल खुमान नामक एक राजा चित्तौर के सिंहासनस्थ थे। उनके राजत्व-काल में ८१२ से ८३६ खुष्टाब्द के अंतर्गत किसी समय में मुसलमानों नेचित्तौरनगर पर आक्रमण किया था । खुमान रासा नामक ग्रंथ में तत् आक्रमण संक्रांत वृत्तांत सविस्तार निवृत्त हुआ । मेवाड़ राज्य के पध-विरचित इतिहास ग्रंथ-समूह के मध्य खुमानरासा सर्वापेक्षा पुरातन है। टॉड साहब कहते हैं भारतवर्ष का एतत् समय का इहिवृत्त नितांत तमसाच्छन्न है। इस कारण खुमानरासा प्रभृति हिंदू ग्रंथ से तत् संबंध में जो कुछ आलोक लाभ हो सकता है वह परित्याग करना उचित नहीं । भारतवर्ष में एतत् काल में जो सब ऐतिहासिक विवरण सत्य कह कर प्रसिद्ध है सो हिंदू ग्रंध में लिखित विवरण अपेक्षा अधिक असंगत वा परिच्छन्न नहीं । जो हो, तदुभय एकत्रित रहनो से भाविकालीन इतिवृत्तप्रणेता उस में से अनेक उपकरण लाभ कर सकेंगे । इस कारण (मुसलमान साम्राज्य के आरंभ से गजनगर राज्य संस्थापन पर्यंत) भारतवर्ष में अरब जाति के समागम का संक्षिप्त विवरण इस अध्याय में सन्निविष्ट किया जायगा । परंतु अरब समागम का सविस्थार-विवरण-विशिष्ट कोई ग्रन्थ नहीं मिलता, यह बड़े सोच की बात है। अलमकीन नामक ग्रंथकार ने खलीफा गण के इतिवृत्त में भारतवर्ष का प्राय : उल्लेख नहीं किया है। अबुलफजल के ग्रंथ में अनेक विषय का सविशेष विवरण प्राप्त होता है और वह ग्रंथ भी विश्वास के योग्य है । फरिश्ता ग्रंथ में इस विषय का एक पृथक् अध्याय है, परंतु उस का अनुवाद यथोचित मत से निष्पन्न नहीं । अब पहिले वाप्पा के वंशीय राजगण का वृत्तांत विवरित किया जाता है, पश्चात यथायोग्य स्थान में सलमान गण का भारतवर्ष संक्रांत 'इतिवृत्त प्रकटित होगा। १. टॉड साहब ने फिरिश्ता के अनुवाद में जो सब विषय परित्याग किया है तन्मध्य में अफगान पाति की उत्पत्ति का विवरण अतीव प्रयोजनीय है । मुसलमान गण के साथ हिजरी ६२ अब्द में जिस काल में अफगान जाति का प्रथम आगमन हुआ तब वे लोग सुलेमान पर्वत के निकटस्थ प्रदेश में बास करते थे । फिरिश्ता ने जिस ग्रंथ के ऊपर निर्भर कर के अफगान का विवरण लिखा है वह यह है "अफगान लोग कायर जाति के लोग फिर उस उपाधिकारी राजगण के आधीन वास करते थे । उन लोगों में बहुतों ने मूसा की प्रतिष्ठित नूतन धर्म-व्यवस्था अवलंबन किया था । जिन लोगों ने पूर्व की पौत्तलिकता त्याग नहीं किया वे लोग हिंदुस्तान से भाग कर कोह सुलेमान के निकटवर्ती देश में बास 44 उदय पुरोदय ६९३ हुआ