पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/७५३

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तपोबल से इस प्रदेश का पानी सुखा कर इस को बसाया था । इनके पीछे गोनदं तक अर्थात कलियुग के प्रारंभ तक राजाओं का कुछ पता नहीं है । गोनद से ही राजाओं का नाम शृंखलाबद्ध मिलता है । मुसल्मान लेखकों ने इसके पूर्व के भी कई नाम लिखे हैं, किंतु वे सब ऐसे अशुद्ध और प्रतिशब्द में खाँ उपाधि विशिष्ट है कि उन नामों पर श्रद्धा नहीं होती । गोन से लेकर सहदेव तक पूर्व में सैंतीस सौ बरस के लगभग डेढ़ सौ हिंदू राजाओं ने कश्मीर भोगा, फिर पूरं पांच सौ बरस मुसल्मानों ने इसका उत्पीड़न किया । (बीच में बागी होकर यद्यपि राजा सुखजीवन ने८ बरस राज्य किया था पर उसकी कोई गिनती नहीं) फिर नाममात्र को कश्मीर कृस्तानी राज्यभुक्त होकर आज चौसठ बरस से फिर हिंदुओं के अधिकार में आया है। अब ईश्वर सर्वदा इस को उपद्रवों से बचाये । एवमस्तु । कश्मीर की संक्षिप्त वंशपरपरा हुआ कश्मीर के वर्तमान महाराज की संक्षिप्त वंशपरंपरा यों है । ये लोग कछवाहे क्षत्री हैं । जैपुर प्रांत से सूर्यदेव नामक एक राजकुमार ने आकर जम्बू में राज्य का आरंभ किया । उसके वंश में भुजदेव, अवतारदेव, यशदेव, कृपालुदेव, चक्रदेव, नृसिंहदेव, अजेनदेव और जयदेव ये क्रम से हुए । जयदेव का पुत्र मालदेव बड़ा बली और पराक्रमी हुआ। इस ने हँसी हँसी में पचास मन के जो पत्थर उठाए हैं वह उस की अचल कीर्ति बन कर अब भी जम्बू में पड़े हैं । उस के पीछे हंबीरदेव, अजेव्यदेव, वीरदेव, घोड़ादेव, कर्पूरदेव और सुमहलदेव क्रम से राजा हुए । सुमहल के पुत्र संग्रामदेव ने फिर बड़ा नाम किया । आलमगीर इनकी वीरता से ऐसा प्रसन्न कि महाराजगी का पद छत्र वर सब कुछ दिया । ये दक्षिण की लड़ाई में मारे गए । इन के पुत्र हरिदेव ने और उनके पुत्र गजसिंह ने राज को बहुत ही बाया । सब प्रकार के नियम बाँधे और महल बनवाए । गजसिंह के पुत्र ध्रुवदेव ने बहुत दिन तक ऐश्वर्यपूर्वक राज्य किया । ध्रुवदेव के रणजीतदेव और सूरतसिंह पुत्र थे। रणजीतदेव को ब्रजराजदेव और उनको निज परंपरासंपूर्णकारी संपूर्णदेव हुए । संपूर्णदेव को सतति न होने के कारण रणजीतदेव के दूसरे पुत्र दलेलसिंह के पुत्र जैतसिंह ने राज्य पाया । महाराज रणजीतसिंह लाहोरवाले के प्रताप के समय में जैतसिंह को पिनशिन मिली और जंबू का राज्य लाहोर में मिल गया । जैतसिंह के पुत्र रघुबीरदेव के पुत्र पौत्र अब अंबाले में हैं और सर्कार अंगरेज से पिनशिन पाते हैं । ध्रुवदेव के दूसरे पुत्र सूरतसिंह को जोरावर सिंह और मियाँ मोटासिंह दो पुत्र थे । मियाँ मोटा को विभूतिसिंह और उन को एक पुत्र ब्रजदेव हैं, जिन को वर्तमान महाराज जंबू ने कैद कर रक्खा है । जोरावरसिंह को किशोरसिंह और उन को तीन पुत्र हुए, गुलाबसिंह, सुचेतसिंह और ध्यानसिंह । महाराज गुलाबसिंह ने महाराजाधिराज रणजीतसिंह से जंबू का राज्य फिर पाया । सुचेतसिंह का वंश नहीं रहा । राजा ध्यानसिंह को हीरासिंह, जवाहरसिंह और मोतीसिंह हुए. जिन में राजा मोतीसिंह का वंश है। महाराज गुलाबसिंह के उद्धवसिंह, रणधीरसिंह और रणवीरसिंह तीन पुत्र हुए । प्रथम दोनों नौनिहालसिंह और राजा हीरासिंह के साथ क्रम से मर गए, इस से महाराज रणवीरसिंह वर्तमान जंबू और कश्मीर के महाराज ने राज्य पाया । इनके एक वैमात्रेय भाई मिया हसिंह हैं, जिनको महाराज ने कैद कर रखा था, पर सुनते हैं कि आज कल वह कैद से निकल कर नैपाल प्रांत में चले गए हैं । सन् १८६१ में महाराज को जी.सी.एस.आई. का पद सरकार ने दिया और १८६२ में दत्तक लेने का आज्ञापत्र भी दिया । इन को २१ तोप की सलामी है । दिल्ली दरबार में इनको और भी अनेक आदरसूचक पद मिले हैं। ये संस्कृत विद्या और धर्म के अनुरागी हैं। इनको तीन पुत्र हैं यथा युवराज प्रतापसिंह, कुमार रामसिंह और कुमार अमरसिंह' । १. वर्तमान महाराज के परिषदवर्ग भी उत्तम हैं । इन के एक बड़े शुभचिंतक पंडित रामकृष्ण जी को कई वर्ष हुए लोगों ने षड्चक्र कर के राज्य से अलग कर दिया था और अब उन के पुत्र पंडित रघुनाथ जी काशी में रहते हैं । महाराज के अमात्य दीवान ज्वाला सहाय के पौत्र दीवान कृपाराम के पुत्र अनंतराम जी है, जो अँगरेजी फारसी आदि पढ़े और सुचतुत हैं । बाबू नीलाम्बर मुकुर्जी, पंडित गणेशचौबे प्रभृति और भी कई चतुर लोग राज्यकार्य में दक्ष है। काश्मीर कुसुम ७०९