पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८०६

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ऐसा दुखी हुआ अलाउद्दीन बदायूँ चला गया । बहलूल के बादशाह होने से पंजाब दिल्ली में मिल गया । जौनपुरवालों से छब्बीस बरस तक लड़कर उसने वह बादशाहत भी दिल्ली में मिला ली । १४८८ में इस के मरने पर इस का बेटा सिकंदर बादशाह हुआ । इसने हिंदुओं को अनेक कष्ट दिए । तीर्थ बंद कर दिए । पोर्चुगीज लोग पहले पहल इसी के काल में यहाँ आए । १५१६ में इस के मरने पर इसका बेटा इबराहीम बादशाह हुआ । यह ऐसा नीच और दुष्ट और अभिमानी था कि सब सूबेदार इस से फिर गए । पंजाब का सूबेदार सिकंदर लोदी जो इसका गोती था इस से कि इसने काबुल के बादशाह बाबर जो तैमूर से छठी पुस्त में था उस को अपनी सहायता को बुलाया । बाबर ने आते ही पहले सिकंदर ही का राज नाश किया, फिर १५१६ में पानीपत के प्रसिद्ध युद्ध में इबराहीम को जीतकर आप हिंदुस्तान का बादशाह हुआ । बाबर ने बड़ी सावधानी से राज्य करना आरंभ किया । दिल्ली के अधीनस्थ जो सूबे फिर गये थे सब जीते गए । १५२७ में मेवाड़ के राजा संग्राम सिंह ने बहुत से देश जीत लिए थे, इस से कई बेर इन से घोर संग्राम हुआ, १४२८ में चंदेरी का किला टूटा । सब राजपूत बड़ी वीरता से खेत रहे । इसी साल राणा संग्राम सिंह ने रतभंवर का किला ले लिया । १५२९ में बिहार, लाहौर, बंगाल आदि में अफगानों को बाबर ने पराजित किया । १५३० सन् में २६ दिसम्बर को बाबर की मृत्यु हुई । कहते हैं हुमायूँ बहुत बीमार हो गया था । बाबर ने इस बात का इतना सोच किया कि आप ही बीमार होकर मर गया । बाबर में कई गुण सराहने के योग्य थे । हुमायूँ ने राज्य पर बैठ कर अपने तीनों भाई कामरान, हिंदाल और अस्करी को यधाक्रम काबुल, संमल और मेवात का देश दिया । पहले जौनपुर का विद्रोह निवारण करके फिर वह गुजरात पर चढ़ और वहाँ के बादशाह बहादुर शाह को बड़ी बहादुरी से जीत लिया । १५३७ में शेरशाह ने बंगला जीत लिया और जब इधर हुमायूं शेरशाह से लड़ने को आया तो बहादुर शाह फिर स्वतंत्र हो गया । शेरशाह पहले बाबर का एक सेनाध्यक्ष था । हुमायूं ने पहले तो चुनार शेरशाह से जीता, किंतु पीछे शेरशाह ने विश्वासघात करके रोहतासगढ़ के राजा को मार कर उसके किले में अपना परिवार रख कर हुमायूँ पर एक बारगी, ऐसा धावा किया कि बनारस और कन्नौज तक जीत लिया । १५३९ में फिर एक बेर शेरशाह ने हुमायूँ का पीछा किया और गंगा में कूद कर हुमायूँ ने अपने को बचाया । सन् चालीस में फिर हुमायूँ शेरशाह से हारा और गंगा में तैर कर किसी तरह फिर बच गया । दिल्ली पहुंच कर अपना परिवार लेकर वह लाहौर गया, किंतु वहाँ भी शेरशाह ने पीछा न छोड़ा, इस से वह सिंध होता हुआ राजपुताने में आया । यहीं इसी आपत्ति के समय अमरकोट में १५४२ में अकबर का जन्म हुआ । डेढ़ बरस अमरकोट के राजा के आनय में रह कर हुमायूँ ईरान में चला गया और वहाँ के बादशाह की सहायता से वहीं रहने लगा। शेरशाह ने (१५४०) हुमायूँ के अधीनस्थ सब राज्य अधिकार करके रायसेन, मारवार और मालवा जीता । (१५४५) चित्तौर जीतने का दृढ़ संकल्प कर के मार्ग में कालिंजर का किला घेरे हुए पड़ा था कि रात को मेगजीन में आग लगने से झुलस कर प्राण त्याग दिया । यह बड़ा धीर और बुद्धिमान था । घोड़े की डॉक, राजस्वकर, सराय, तहसीलदार आदि कई नियम उस ने उत्तम बाँधे थे । बंगाल से मुलतान तक एक राजमार्ग इस ने बनवाया था । इस के मरने पर इस का छोटा बेटा जलालखाँ सलीमशाह सूर नाम रख कर बादशाह हुआ । १५५३ में इस के मरने पर इस के बेटे फीरोजशाह को मार कर इस का शाला मुहम्मदशाह अदली बादशाह हुआ । राज्य का सब भार हेमू नामक एक बनिये के ऊपर छोड़ कर आप अति विषय में प्रवृत्त हुआ । चारों ओर बलवा हो गया । इसी वंश के इबराहीम सूर ने दिल्ली, आगरा, सिकंदर सूर ने पंजाब और मुहम्मद सूर ने बंगाला जीत लिया । हुमायूं, जो हिंदुस्तान जीतने का अवसर देख ही रहा था. इस समय को अनुकूल समझ कर पंद्रह हजार सवार ले कर सिंध उतर कर हिंदुस्तान में आया और (१५५५) पंजाब जीतता हुआ दिल्ली में पहुँच कर फिर से भारतवर्ष के सिंहासन पर बैठा । जितने देश अधिकार से निकल गए थे सब जीते गए । किंतु मृत्यु ने उस को राज भोगने न दिया और एक दिन संध्या को महल की सीढ़ी पर से पैर फिसल कर गिरने से (१५५६) परलोक सिधारा । इस की मृत्यु पर इस का पुत्र जगद्विख्यात अबुलमुज़फ्फर जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर शाह साढ़े तेरह बरस की अवस्था में बादशाह हुआ । बैरम खाँ खानखाना राज्य का प्रबंध करता था । बदखशाँ के बादशाह मारतेन्दु समग्र ७६२