पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८७७

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विदित हो कि इस दास ने परोपकारार्थ जो कार्तिक कर्म विधि लिखी थी. उसे हमारे एक मित्र ने बहुत प्रसन्नतापूर्वक अंगीकार किया । इस हेतु ऐसी इच्छा हुई कि इसी भाँत मार्गशीर्ष को भी विधि लिखी जाय तो बहुत लोकोपकार होगा क्योंकि इस परम पवित्र मास का माहात्म्य बहुत लोग जानते है और यह अगहन महीना श्री भगवान का स्वरूप है जैसा आपने श्री मत् भगवतगीता और श्री मत भागवत में आज्ञा किया है । और व्रज की कुमारिकागण ने श्री भगवान के प्राप्ति के अर्थ इसी अगहन का स्नान किया था, जिससे उन्हें श्री कृष्ण मिले । इस अगहन का माहात्म्य स्कंदपुराण में लिखा है, जिसमें से नित्य विधि अध्याय क्रम से लिखते हैं । ब्रहमा भगवान से पूछते हैं कि आपने श्रीमद्गीता वा श्रीभागवत में आज्ञा किया है कि अगहन हमारा स्वरूप है, इस हेतु हम उसका माहात्म्य अच्छी भांति सुना चाहते हैं । श्री भगवानुवाच । अन्यैर्धादिभिः कृत्वा गोषितं मार्गशीर्षकं । मत प्राप्तेः कारणं मत्वा देवैः स्वर्गनिवासिभिः ।। श्री भगवान आज्ञा करते हैं कि सब धर्मों करके मार्गशीर्ष को स्वर्गनिवासी देवताओं ने हमारे प्राप्ति का कारण जान के छिपाय दिया । येकेचित्पुण्यकर्माणो ममभक्तिपरायणाः । तेषामवश्यं कर्तव्यं मार्गशीर्षमघापहं ।। परंतु जो कोई पुण्य कर्मा हमारे भक्त होय उनको हमारे स्वरूप अगहन मास का व्रत अवश्य करना चाहिए। उषस्युत्थाय योमर्त्यः स्नानं विधिवदाचरेत् । तुष्टोहं तस्य यच्छामि आत्मानमपि पुत्रक ।। ४ ।। हे पुत्र, अगहन में जो चार घड़ी रात रहे उठ के नहाते हैं उनको हम अपनी आत्मा भी दे देते हैं ।। इत्यादि प्रथमाध्याये । श्री भगवान आज्ञा करत है । अब स्नान की विधि लिखते हैं । बड़े सबेरे उठ के गुरु को नमस्कार करके हमारा ध्यान करै और सहस्रनाम इत्यादि पढ़ के. गाँव के बाहर मल त्याग करके, शौच से शुद्ध होके, आचमन करके, दतुवन करके स्नान करै । तुलसी जी के जड़ की मिट्टी और उसका पत्ता लेकर के मूल मंत्र पढ़ के वा गायत्री पढ़ के शरीर में लगाय के स्नान करे । स्नान की समय इन मंत्रों से श्री गंगाजी का आवाहन करै । मंत्र विष्णुपादप्रसूतासि वैष्णवी विष्णु देवता । वाहि पापात्समस्तान्माजन्ममरणांतिकात् ।। तिन: कोट्योध कोटिश्चतीर्थानां वायुरब्रवीत् । दिविभुव्यन्तरिक्षे च तानि ते सन्तु जान्हवि । । नन्दिनीत्येव ते नाम देवेषु नलनीति च । दक्षापृथ्वी च बिहगाविश्वनाथाशिवासती ।। विद्याधरी सु प्रसन्ना तथा लोकप्रसादिनी । क्षेमावती जान्हवी च शान्ताशान्तिप्रदायिनी । । एतानि पुण्य नामानि स्नानकाले प्रकीर्तयेत् । भवेत्सन्निहितातत्र गंगा त्रिपथगामिनी । । इन मंत्रों को पढ़ के फिर श्री गंगा जी की मृत्तिका इस मंत्र से सिर में लगाना । मंत्र अश्वक्रान्ते रथक्रान्ते विष्णुक्रान्ते बसुन्धरे । मृत्तिके हर मे पापं यन्मया दुष्कृतंकृतं । ।

मार्गशीर्ष महिमा ८३३