पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/१३३

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(१०) शील, नम्रता आदि चारित्न को भी धम मानते थे, वह सब जगत को ब्रह्ममयऔर सत्य मानते थे।

बाबू साहिब ने बहुत सा द्रव्य व्यय किया, परन्तु कुछ शोच न था। कदाचितशोच होता भी था तो दो अवसर पर, एक जब किसी निज प्राश्रित को या किसीशुद्ध सज्जन को बिना द्रव्य कष्ट पाते देखते थे, दूसरे जब कोई छोटे मोटे कामदेशोपकारी द्रव्याभाव से रुक जाते थे।

हा। जिस समय हमको बाबू साहिब की यह करुणा की बात याद आजाती है तो प्राण कठ में आता है। वह प्राय कहते थे कि अभी तक मेरे पासपूर्वदन बहुत धन होता तो म चार काम करता। (१) श्रीठाकुर जी को बगीचेमे पधराकर धूम धाम से घटऋतु का मनोरथ करता (२) विलायत, फरासीसऔर अमेरिका जाता (३) अपने उद्योग से एक शुद्ध हिदी की यूनिवर्सिटी स्थापनकरता (हाय रे । हतमागिनी हिन्दी, अब तेरा इतना ध्यान क्सिको रहेगा) (४) एक शिल्प कला का पश्चिमोत्तर देश मे कालिज करता।

हाय । क्या प्राज दिन उन के बडे २ धनिक मित्रो मे से कोई भी मित्रका दम भरने वाला ऐसा सच्चा मित्र हे जो उनके इन मनोरथो में से एक को भीउनके नाम पर पूरा करके उनकी प्रात्मा को सुखी करे | हायरे । हतभाग्यपश्चिमोत्तर देश, तेरा इतना भारी सहायक उठ गया, अब भी तुझसे उनके लियेकुछ बन पडेगा या नही? जब कि बगाल और बम्बई प्रदेश मे साधारण हितैषियो के स्मारक चिह्न के लिये लाखो बात की बात मे इकटठे हो जाते हैं।

बाबू साहिब के खास पसन्द की चीजें राग, वाद्य, रसिक समागम, चित्र,देश २ और काल २ की विचित्र वस्तु और भाति २ को पुस्तक थीं।

काव्य उनको जयदेव जी, देव कवि, श्री नागरीदास जी, श्री सूरदास जी,और प्रानन्दघन जी का अति प्रिय था। उर्द मे नजीर और अनीस का।अनीस को अच्छा कवि समझते थे ।

सन्तति बाबू साहिब को तीन हुई। दो पुत्र एक कन्या पुत्र दोनो जाते रहे,कन्या है, विवाह हो गया।

बाबू साहिब कई बार बीमार हुए थे, पर भाग्य अच्छे थे इसलिये अच्छे होतेगये। सन् १८८२ ई० मे जब श्रीमन्महाराणा साहिब उदयपुर से मिलकर जाडे