पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/१९

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( २० ) पूज्य भारतेदु जी की जीवनी लिखना मुझे उचित न था, इसमे आत्मश्लाघा का दोषी बनना पडता है, परन्तु यह सोचकर कि यदि और लोगो की भॉति आलस्य मे, वे बाते जो मुझे विदित है, लिखने से रह गई और मेरा शरीर भी न रहा तो उनका पता लगना भी दुर्घट हो जायगा और यह लालसा मेरी मन की मन ही में रह जायगी इसलिये मैने यह धृष्टता की है। आशा है कि सज्जन क्षमा करेंगे। हर्ष की बात है कि हिंदीहितैषी बाबू रामदीनसिह जी के योग्य पुत्र बाबू रामरणविजय सिह का ध्यान अपने पिता की इस इच्छा को पूरा करने की ओर गया है । आशा है कि वे अपने पिता की सगृहीत सामग्नियो से इस जीवनी की पूर्ति करेंगे। __"भारतमित्र" सपादक सुहृद्वर बाबू बालमुकुद गुप्त भी एक जीवनी लिखनेवाले है। यदि उक्त दोनो जीवनियो में कुछ भी सहायता मेरी लिखी इस जीवनी से मिलेगी तो मै अपने परिश्रम को सफल समदूंगा। (म० १९६१) राधाकृष्ण दास