पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्न (५) दिल्ली के शाही घराने से इनके प्रतिष्ठित पूर्वजो का बहुत ही घनिष्ठ सम्बन्ध था। जब शाहजहाँ का बेटा शाह शुजा सन् १६५० के लगभग विशाल बङ्गाल का सूबेदार होकर पाया, तो इनके पूर्वज भी उसके साथ दिल्ली छोड बङ्गाल में चले पाए, और जैसे जसे मुसलमानी राजधानी बङ्गाल में बदलती गई वैसे वैसे ये लोग भी अपना प्रवासस्थान परिवतन करते गए। राजमहल और मुर्शिदाबाद में अब तक इनके पूर्वजो के उच्च प्रासादो के अवशिष्ट चिह्न पाए जाते है । इसी विशाल वश के सेठ बालकृष्ण के पौत्र तथा सेठ गिरिधारी लाल के पुत्र सेठ अमीचन्द के समय में इस देश में अगरेजो का राजत्वकाल प्रारम्भ हुआ। उस समय अगरेजो के सहायको मे से ये भी एक प्रधान सहायक थे। उस समय इनका इतना मान था कि इनके नौ बेटो मे से तीन को "राजा" और एक को "रायबहादुर" की पदवी प्राप्त थी। इन पुत्रो मे से वश केवल बाबू फतहचन्द्र का चला। सेठ प्रमीच द्र का वृत्तान्त इतिहासो मे इस प्रकार से प्रसिद्ध है। सेठ अमीचन्द सेठ प्रमीचन्द का चार लाख रुपया कलकत्ते मे लुट गया था, और भी बहुत कुछ हानि हो गई थी, परन्तु नव्वाब की ओर से उसकी कुछ भी रक्षा न हुई। निदान यो ही देश को दुखित देख जब लोगो ने अङ्गरेजो की शरण ली तो ये भी उनमे एक प्रधान पुरुष थे। इनसे अगरेजो से यह दृढ प्रतिज्ञा हो गई थी कि सिराजुद्दौला के कोष से जो द्रव्य प्राप्त होगा उसमे से पॉध रुपया सैकडा तुम्हें मिलेगा, और दो प्रतिज्ञापत्र लिखे गए। लाल काग्रज पर जो लिखा गया उस पर सेठ अमीचन्द को ५) रुपया सैकडा देने को लिखा गया था, परन्तु सफेद काग्रज पर जो लिखा गया उस पर इनका नाम तक न लिखा । जब हस्ताक्षर होने के हेतु कौंसिल में ये पत्र उपस्थित हुए तो 'एडमिरल' ने लाल काराज पर हस्ताक्षर करना सर्वथा अस्वीकार किया पर कौंसिल वालो ने उनका हस्ताक्षर बना लिया। बङ्गाल विजय के पश्चात् जब खजाना सहेजा गया तो डेढ़ करोड रुपया निकला। सेठ अमीचन्द ने तीस पैतीस लाख रुपया मिलने का हिसाब जोड रक्खा था। जब प्रतिज्ञापत्र पढ़ा गया और इनका नाम तक न निकला तो इन्होने उस षडचक्र