पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/३७

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(१८) भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्र बुढवा मगल की भाँति होली का उत्सव भी धूम धाम से होता और बिरादरी को जेवनार, महफिल होती। वर्ष मे अपने तथा बाबू गोपालचन्द्र के जन्मदिवस को ये महफिल जेवनार करते। बिरादरी मे इनका ऐसा मान्य था कि लोग बडे बडे प्रतिष्ठित और धनिको के रहते भी इन्हें अपना चौधरी मानते थे और यह प्रतिष्ठा इस वश को आज तक प्राप्त है। चौखम्भास्थित अपने प्रसिद्ध भवन मे इन्हो ने ही सुन्दर दीवानखाना बनवाया था। सुनते हैं कुछ ऐसा विवाद उस समय उपस्थित हो गया था कि जिसके कारण इस बडे दीवानखाने की एक मजिल इन्हो ने एक रात्रि में तैयार कराई थी। उस समय इनकी सवारी प्रसिद्ध थी। जब ये घर के बाहर कहीं जाते, बिना जामा और पगडी पहिरे न जाते, तामजाम पर सवार होकर जाते, नकीब बोलता जाता । पासा, बल्लम, छडी, तलवार, बन्दूक आदि बाँधे पचास साठ सिपाही साथ में होते। यह प्रथा कुछ कुछ बाबू गोपालचन्द्र तक थी। ___ ये गोस्वामी श्री गिरिधर जी महाराज के शिष्य हुए। श्री गिरिधर जी महाराज की विद्वत्ता तथा अलौकिक चमत्कार शक्ति लोकप्रसिद्ध है। श्री गिरिधर जी महाराज इन पर बहुत ही स्नेह रखते थे, यहाँ तक कि इनकी बेटी श्रीश्यामा बेटी जी इन्हें भाई के तुल्य मानतीं और भाईदूज को तिलक काढती थीं। जिस समय श्री गिरिधर जी महाराज श्री जी द्वार से श्री मुकुन्दराय जी को पधराकर काशी लाए, सब प्रबन्ध इन्हीं को सौंपा गया था। बडी धूम धाम से बारात सजा कर श्री मुकुन्दराय जी को नगर के बाहर से पधरा लाए थे। इसका सविस्तार वर्णन उक्त महाराज की लिखाई "श्री मुकुन्दराय जी की वार्ता में है। जब कभी महाराज बाहर पधारते, मन्दिर इन्ही के सुपुर्द कर जाते । उक्त महाराज तथा श्रीश्यामा बेटी जी के लिखे मुखतारनामा प्राम इनके तथा बाबू गोपालचन्द्र जी के नाम के अब तक रक्षित है। इन्हो ने उक्त महाराज की आज्ञा से अपने घर मे श्री वल्लभकुल के प्रथानुसार ठाकुर जी की सेवा पधराई और उनके भोग राग का प्रबन्ध राजसी ठाठ से किया। ठाकुर जी की परम मनोहर मूर्ति, युगल जोडी, धातु बिग्रह है, तथा नाम . "श्री मदन मोहन जी" है। वर्तमान शैली से सेवा होते हुए ८५ वर्ष से अधिक