(३६) भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्न के निकट भूषन रहो । अलँकार प्रियो विष्णु यह पुरान मे लिखते हैं । सो उनको प्रसन्न करनी है यासो अलकारमय स्तुति करी यद्वा। आगे व्रज मे अवतार लेके शृगार रस प्रधान लीला करनी है तासो भूषन अपन करत है। पुन प्रश्न । पूरन उपमा अलकार तें काहे क्रम बाँधो। उत्तर । षोडश कला परिपूर्ण अवतार की इच्छा। ग्रथातरे। दोहा । भौहै कुटिल कमान सी सर से पैने नैन । वेधत ब्रज वालान ही बशीधर दिन रैन। इत्यादि जानिए।" पूज्य भारतेन्दु जी ने इनके मुख्य सभासदो के नाम एक याददाश्त मे इस प्रकार लिखे है-- पडित ईश्वरदत्त जी (ईश्वर कवि), सरदार कवि, गोस्वामी दीनदयाल गिरि, कन्हैयालाल लेखक, पडित लक्ष्मीशङ्कर व्यास, बाबू कल्यानदास, माधोराम जी गौड, गुलाबराम नागर और बालकृष्ण दास टकसाली। साधु महात्माओ का समागम इनपर उस समय के साधु महात्मानो की भी बडी कृपा रहती थी और ये भी सदा उन लोगो की सेवा शुश्रूषा मे तत्पर रहते थे। एक पुर्जा उस समय का मुझे मिला है जो अविकल प्रकाशित किया जाता है-- ___ "राम किंकर जी अयोध्या के महन्त जिनका नाम जाहिर है आपने भी सुना होगा, बडे महात्मा है सो राधिकादास जी के स्थान पर तीन चार रोज से टिके हैं अभी उनके साथ सहर मे गए है और चाहिए कि दो तीन घडी मे पाप की भेट को प्रावै क्योकि राधिका दास जी की जुबानी आपके गुन सुने और सहस्र नाम की पोथी देखी उत्कठा मालूम होती है और है कैसे 'कौपीनवन्त खलुभाग्यवन्त'। राधिकादासजी, रामकिंकर जी, तुलाराम जी, भागवतदास जी प्रादि उस समय के बडे प्रसिद्ध महात्मा गिने जाते थे। इन लोगो से इनसे बहुत स्नेह था, वरञ्च इन लोगो से भगवत् सम्बन्धी चुहलबाजी भी होती थी। एक दिन इहीं