(४०) भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्र के लुप्त होने का विशेष कारण यह जान पडता है कि इनके अक्षर अच्छे नहीं होते थे, इसलिये वे स्वय पुर्जी पर लिख कर सुन्दर अक्षरो मे नकल लिखवाते और सुन्दर चित्र बनवाते थे। तब मूल कापी का कुछ भी यत्न न होता और ग्रन्थ का शन्नु वही उसका चित्र होता । मैने वाल्मीकि-रामायण और गर्गसहिता की सचित्र कापी बचपन मे देखी थी, परन्तु उसे कोई महाशय पूज्य भारतेन्दु जी से ले गए और फिर उन्होने उसे न लौटाया। कीतन की पुस्तक मुन्शी नवलकिशोर के प्रेस से खो गई और 'नहुषनाटक" का कुछ भाग "कविवचनसुधा" प्रथम भाग मे छपकर लुप्त हो गया। खेद है कि पूज्य भारतेन्दु जी को असावधानी ने इनको बहुत हानि पहुंचाई। दशावतार कथामृत मानो उन्होने भाषा मे पुराण बनाया था। पुराण के सब लक्षण इसमे हैं । बलिरामकथामृत बहुत ही भारी ग्रन्थ है । वह ग्रन्थ स० १९०६ से १९०८ तक मे पूरा हुआ था। भारतीभूषण अलङ्कार का अद्भुत ग्रन्थ है। अच्छे अच्छे कवि अपने विद्यार्थियो को यह ग्रन्थ पढाते हैं । नहुषनाटक भाषा का पहिला नाटक है। भाषा व्याकरण-छन्दोबद्ध भाषा का व्याकरण अत्यन्त सुगम और सरल ग्रन्थ है । जरासन्धबध महाकाव्य और रसरत्नाकर अधूरे ही रह गए। इन दोनो को पूज्य भारतेन्दु जी पूरा करना चाहते थे, परन्तु खेद कि वैसा ही रह गया। जरासन्धबध महाकाव्य बहुत ही पाण्डित्य पूर्ण वीररसप्रधान ग्रन्थ है। भाषा मे यह ग्रन्थ एम० ए० का कोर्स होने योग्य है। इसकी तुलना के भाषा मे बिरले ही ग्रन्थ मिलेंगे। इस ढङ्ग का प्रन्थ केवल कविवर केशवदास कृत राम- चन्द्रिका ही है। इनकी कविता की प्रशसा फ्रास देश के प्रसिद्ध विद्वान गासिनदी तासी ने अपने ग्रन्थ मे की है और डाक्तर निअर्सन तथा बाबू शिवसिंह ने (शिवसिंह सरोज मे) इनकी विद्वत्ता को मुक्त कठ से स्वीकार किया है। कविता इनकी कविता पाण्डित्यपूर्ण होती थी। इन्हें अलङ्कारपूर्ण श्लेष, जमक इत्यादि कविता पर विशेष रुचि थी। परन्तु नीति शृङ्गार और शान्ति रस की