पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/८४

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(६६) भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्न सम्भव होगा वे देशी पदार्थों ही का व्यवहार करेंगे। स्वय भी इस प्रतिज्ञा का पालन यथासाध्य करते रहे। इस समाज से "भवगक्तितोषिणी" मासिक पत्रिका भी निकली थी जो थोडे ही दिन चलकर बन्द हो गई। इस समाज के नियमादि विशेष रोचक है इसलिये प्रकाशित किए जाते है। स समाज को मि० श्रावण शुक्ल १३ बुधवार स० १९३० को प्रारम्भ किया था।। सके नियम ये थे-- १ श्री तदीय समाज इसका नाम होगा। २ यह प्रति बुधवार को होगा। ३ कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भी होगा। ४ प्रत्येक वैष्णव इस समाज मे पा सकते हैं परन्तु जिनका शुद्ध प्रेम होगा वे इसमे रहेंगे। ५ कोई प्रास्तिक इस समाज में आ सकता है पर जब एक सभासद उसके विषय मे भली भाँति कहेगा। ६ जो कुछ द्रव्य समाज मे एकत्रित होगा धन्यवाद पूर्वक स्वीकार किया जायगा। समाज क्या करेगा-- (क) समाज का प्रारम्भ किसी प्रेमी के द्वारा ईश्वर के गुणानुवाद से होगा। (ख) गुरुप्रो के नामो का सङ्कीर्तन होगा। (ग) एक वक्ता कोई सभासद गत समाज के चुने हुए विषय पर कहेगा। घ) एक अध्याय श्री गीताजी का और श्रीमद्भागवत दशम का एक अध्याय, पढे जायेंगे। (ड) समाज के समाप्ति मे नाम सङ्कीर्तन होगा और दूसरे समाज के हेतु विषय नियत किया जायगा और प्रत में प्रसाद बॅटेगा। ८ इसके और भी क्रम सामाजिको की प्राज्ञा से बढ़ सकते हैं। & यद्यपि इस समाज से जगत और मनुष्यो से कुछ सम्बन्ध नहीं तथापि जहाँ तक हो सकेगा शुद्ध प्रेम की वृद्धि करेगा और हिंसा के नाश करने मे प्रवृत्त होगा। इसके ये महाशय सभासद थे, १ श्री हरिश्चन्द्र २ राजा भरत पूर (राव श्री कृष्णदेव शरण सिंह-अच्छे कवि और विद्वान थे) ३ श्री गोकुलचन्द्र ४ दामो- पर शास्त्री (संस्कृत हिन्दी के प्रसिद्ध कवि) ५ तिलवण कर ( १ ) ६ तारका-