पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/८८

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(७०) भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्न के अकाल में सहायता देने के लिये ये बाजार मे खप्पर लेकर भीख मांगते फिरे थे, हजारो ही रुपए उगाह कर भेजे थे। काशी के कम्पनी बाग मे लोगो के बैठने को लोहे को बेञ्चे अपने व्यय से रखवाई थी। मणिकर्णिका कुड मे हजारो यात्री गिरा करते थे, उस मे लोहे का कटघरा अपने व्यय से लगवा दिया। माधोराय। के प्रसिद्ध धरहरे पर छड नहीं लगे थे, जिससे कभी कभी मनुष्य गिरकर चूर हो गए हैं, उस पर छड अपने व्यय से लगवाया इन कार्यों के लिये म्यूनिसिपलिटी ने धन्य- वाद दिया था। म्यो मेमोरिमल मे १५०० रु० दिया था। फ्रास और जर्मन की लडाई का इतिहास तथा सर विलियम म्योर की जीवनी, गोरक्षा पर उपन्यासमादि कितने ही ग्रन्थ रचना के लिये पारितोषिक नियत किया था। प्रात स्मरणीया मिस मेरी कारपेन्टर के स्त्रीशिक्षा सम्बन्धी उद्योग मे प्रधान सहायक थे। विवाह आदि मे अपव्ययिता कम करने के आन्दोलन के सहकारी थे। मिस्टर शेरिङ्ग, डाक्तर हानली, डाक्तर राजेन्द्र लाल मित्र, पण्डित ईश्वरचन्द्र विद्यासागर प्रभृति कितने ही ग्रन्थकारो के कितने ही ग्रन्थ रचना मे ये सहायक रहे हैं, जिन्हें उन्होने निज ग्रन्थो मे धन्यवाद पूर्वक स्वीकार किया है। थिनासोफिकल सोसाइटी के सस्थापक कर्नल पालकाट और मडेम ब्लेवेट्स्की का काशी मे जब जब पाना हुमा तब तब ये उनके सहायक रहे। अपने स्कूल के छात्र दामोदरदास के बी० ए० पास करने पर सोने की घडी और काशी सस्कृत कालेज से प्राचाय परीक्षा मे पहिले पहिल जितने लडके पास हुये थे सभी को घडिएँ पारितोषिक दी थीं। भारतवर्ष के भिन्न भिन्न प्रान्तो मे जितनी लडकियाँ अग्रेजी परीक्षामो मे उत्तीर्ण हुई थीं सभो को शिक्षाविभाग द्वारा साडिएँ पारितोषिक दी थीं। इनमे से कलकत्ता बेथुन कालेज की लडकयो को जो साडिएं भेजी गई थीं उन्हें श्रीमती लेडी रिपन ने अपने हाथ से बाँटा था। बङ्गाल के डाइरेकटर सर प्रालफ्रेड क्राफ्ट साहब ने लिखा था कि जिस समय श्रीमती ने हष पूर्वक यह पाप का उपहार कन्याओ को दिया था, उस समय आनन्द ध्वनि से सभास्थल गूंज उठा था। ब्राह्म विवाह पर जिस समय कानून बन रहा था उस समय इन्होने जो सहायता दी थी उसके लिये उक्त समाज के नेता स्वर्गीय केशवचन्द्र सेन ने अपने पत्र द्वारा हवय से इन्हें धन्यवाद दिया था। सन् १८५३ ई० मे भारतबन्धु लार्ड रिपन के समय मे जो इलबर्ट बिल का आन्दोलन उठा था उसे इन्होने अपने "काल चक्र" में "पार्यों मे ऐक्य का सस्थापन (इल्बर्ट बिल) सन् १९८३" लिखा था । वास्तव मे उसी समय से हिन्दुस्तानियो मे कुख ऐक्य का बीजारोपन हुआ। उस समय सुप्रसिद्ध बाबू सुरेन्द्र नाथ बनर्जी ने एक