पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/१०

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इन दोनों जीवनियों को पढ़ा था और उसी समय से एक जीवनी लिखने का मुझे भी उत्साह हुआ पर उन दोनों पुस्तकों के उप- क्रमों के पढ़ने में उत्साह अवश्य मंद पड़ गया था ' हाँ सामग्री जो कुछ उपलब्ध हो जाती थी वह एकत्र करता जाता था। सं० १९८३ वि० में जब मैंने बा० गोपाल चन्द्र उपनाम गिरिधरदास रचित जरासंधबध महाकाव्य का संपादन किया और इसकी भूमिका के लिए कवि परिचय तैयार करने लगा तब 'विचार था कि इस ग्रंथ को भूमिका में बा० गोपालचन्द्र तथा उनके पूर्वजों की विस्तृत जीवनी दी जाय पर नई नई बातों का पता लगते रहने और इस ग्रंथ की भूमिका के बढ़ जाने के डर से वैसा नहीं किया गया। इस प्रकार साधन एकत्र होते रहने पर भारतेन्दु जी की जीवनी लिखने का विचार दृढ़ होता गया। साथ ही वह भाव कि अपने ही मातामह को जीवनो लिखने से मुझ पर, स्यात् बा० राधाकृष्णदास जी से भी अधिक प्रात्मश्लाघा का दोष लगाया जायगा, शिथिल होता गया और इस प्रकार यह जीवनी क्रमशः तैयार होने लगी। प्रायः तीन वर्ष से अधिक हुआ कि यू. पी० सर्कार द्वारा संस्थापित 'हिन्दुस्तानी एकै डेमो' के मंत्री महोदय का पत्र मिला कि मैं भारतेन्दु वा० हरिश्चन्द्र का जीवनचरित्र लिख कर उक्त संस्था को प्रकाशित करने के लिये हूँ। इस पत्र के प्राप्त होने पर यह जीवनी कुछ शीघ्रता से लिखी जाने लगी, जो अब पूर्ण हो गई। ऐसे जीवनचरित्रों को भूमिका में प्रायः लेख कगा दिखलाते हैं कि उन्होंने लेखनी उठाने के लिए अपने नायक को किन किन कारणों से चुना है। इन कारणों को बतलाने में वे उन नायकों के औदार्य, शाल, सौजन्य, वोरता, कम, कार्य राक्ति, कवित्व आदि की प्रशंसा कर दिख जाते हैं कि उ6 जोवना से देश को बहुत -