पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/१५७

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संतति तथा स्त्री १४७ थे। कितनी कविताएँ, लेख तथा चरित्र छपे। एक संग्रह शोकावली के नाम से पीछे से प्रकाशित भी हुआ था । इनके स्मारक स्थापित करने की चर्चा बहुत उठी पर अब केवल 'कहेगे सबै ही नैन नीर भरि भरि पाछे प्यारे हरिश्चन्द्र को कहानी रहि जाएगी।' बस, भारत के देश से उस का कोई भी शुभचिंतक ऐसी कहानी से अधिक पुरस्कार में या स्मृति में क्या माँगने की आशा कर सकता है ? भारतेन्दु बा० हरिश्चन्द्र का देहावसान माघ कृ० ६ सं० १६४१ वि० (६ जनवरी सन् १८८५ ई० ) को हुआ था । आप की अवस्था उस समय चौंतीस वर्ष चार महीने की थी। यद्यपि भारतेन्दु को अस्त हुए पचास वर्षे होते आए पर आज भी उसकी ज्योत्स्ना मंद नहीं हुई है । स्वर्गीय पं० श्रीधर पाठक ने ठीक ही कहा है कि- जब लौं भारत भूमि मध्य आरजकुल बासा । जब लौं प्रारज धर्म माहिं प्रारज विश्वासा ॥ जब लौं गुन आगरी नागरी प्रारज बानी । जब लौं अारज बानी के प्रारज अभिमानी।। तब लौं यह तुम्हरो नाम थिर विरजोवो रहिहै अटल । नित चंद सूर सुमिरिहैं हरिचंदहु सजन सकल ॥ संतति तथा स्त्री भारतेन्दु जी को दो पुत्र और एक पुत्री हुई थी, पर प्रथम दोनों शैशवावस्था में ही जाते रहे। उनकी पुत्री भी अत्यंत निर्बल थी और शैशवकाल में सदा रुग्ण रहतो थी, यहाँ तक कि इनका शिर एक ओर लटका सा रहता था। इन्हें भारतेन्दु जी