पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/२१

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भारतेंदु हरिश्चन्द्र पूर्णियाँ की चढ़ाई रोक कर उसी समय कलकत्ते की ओर सेना सहित वेग से बढ़ा। पहली जून को वह कासिमबाजार पहुंचा और उसने उस पर अधिकार कर लिया। इसके अनंतर नवाब कलकत्ते की ओर बढ़े और १६ जून को वहाँ पहुँचे । इसी बीच १३ जून को एक पत्र अंग्रेजों ने उस गुप्तचर से बलात् ले लिया, जिसे राजाराम रामसिंह ने गुप्त रूप से अमीन- चंद के पास भेजा था। यह विचार कर कि उनके मित्र अमीनचंद का आक्रमण के समय कुछ अनिष्ट न हो, उन्होंने इस पत्र में केवल सम्मति दी थी कि वे वहाँ से हट कर किसी निरापद स्थान को चले जायँ । अंग्रेजों ने यह पत्र पाकर तत्काल ही अमीनचंद को पकड़ कर कारागार में बन्द कर दिया और उसी प्रकार कृष्णदास को भी बन्दी कर दिया। अमीनचंद का घर, वैभव, सामान आदि कहीं हटा न दिया जाय, इस लिए कुछ गोरे सैनिक उनकी देखभाल को उनके घर के चारों ओर नियुक्त किए गए। इनके एक सम्बन्धी हजारीमल्ल थे, जिनके हाथ अमीनचंद का कुल कार्यभार रहता था। ओर्म आदि कृत अंग्रेज़ी इतिहासों में इनका सम्बन्ध जिस शब्द द्वारा प्रगट किया गया है, उससे अपने यहाँ के कई सम्बन्धों, साला, बहनोई, साढू आदि का अर्थ निकल सकता है, पर संसार में देखा जाता है कि विशेष कर प्रथम सम्बन्धी ही इस प्रकार दूसरों के कार्य सँभालने में अधिक दक्ष होते हैं, इससे हजारीमल्ल जी अमीनचन्द के साले ही जान पड़ते हैं। अस्तु, जब इनके नाम अंग्रेजों का वारंट आया, तो ये स्त्रियों की शरण में चले गए, पर जब गोरे अन्तःपुर में घुसने का प्रयत्न करने लगे तो अमीनचंद के सिपाही जो लगभग तीन सौ के थे गोरों से भिड़ पड़े। बहुतेरों ने अग्नि-वर्षा से धराशायी होकर प्राण दिए, घायल हुये और यथाशक्ति प्रयत्न किया पर वे सफल