पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/२१२

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रचनाएँ २०३. सफलता पाई है और यह नाटक सभी देश-प्रेमियों के लिये पठनीय है। नीलदेवी सन् १८८१ ई० के अंत में लिखी गई है। यह एक ऐतिहासिक नाटक है, जिसमें एक क्षत्रिय राजा को सन्मुख युद्ध में परास्त न कर सकने पर मुसल्मान सेनापति ने रात्रि-आक्रमण कर उसे कैद कर लिया था । मुसल्मान होना अस्वीकार करने पर वह मार डाला गया। रानी नील देवी पति का बदला लेने को, शत्रु को प्रबल समझकर, षड्यंत्र रचती है और गणिका का छद्मवेश धारण कर, अवसर पाकर नहीं, प्रत्युत् अवसर बनाकर उस मुसल्मान सेनापति को मार डालती है और पति के शव के साथ सती हो जाती है। इस नाटक में वीर तथा करुण-रस के साथ हास्य-रस का भी अच्छा समावेश हुआ है। कादरों की डींगें तथा पागल की बड़बड़ाहट पढ़कर हँसी बरबस आती है । वीरों की बातचीत सुनकर जिस प्रकार चित्त उत्तेजित होता है, उसी प्रकार देवता का गाना सुनकर रुलाई आने लगती है। भाषापात्रों के अनुकूल ही सर्वत्र रखी गई है। यह नाटक रंगमंच पर भी सफ- लता पूर्वक खेला जा चुका है और पठनीय है। इसमें देशहितै- पिता का भाव भरा हुआ है. और जिस आदर्श को लेकर इसकी रचना हुई उसकी इससे पूर्ण रुपेण सिद्धि होती है। जिस समय नीलदेवी का पहिली बार अभिनय हुआ था, उस समय जब और कोई पागल का पार्ट लेने को तैयार नहीं हुआ तब भारतेन्दु जी ने स्वयं बड़ी सफलता से उसका पार्ट किया था। 'अंधेर नगरी चौपट राजा टके सेर भाजी टके सेर खाजा प्रहसन की सं० १६३८ में रचना हुई। कहा जाता है कि विहार प्रांत के किसी जमींदार के अन्यायों को लक्ष्य कर के उसे सुधारने