पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/२४१

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-- स्फुट ग्रन्थ तथा लेख २३३ समय स्वर्गीय श्री गोस्वामी राधाचरण जी ने 'दीपनिर्वाण' तथा 'सरोजिनी' का उल्था किया, और बा० गदाधर सिंह मे कादंबरी का संक्षिप्त तथा 'दुर्गेशनन्दिनी' का पूरा अनुवाद किया था। पं० रामशंकर व्यास द्वारा 'मधुमती' और बा० राधाकृष्ण दास द्वारा 'स्वर्णलता' अनुवादित हुई थीं। 'चन्द्रप्रभा पूर्णप्रकाश', 'राधा- रानी', 'सौन्दर्यमयी' आदि भी इसी प्रकार अनुवादित हुई थीं। भारतेन्दु जी ने 'कुरान शरीफ़' के कुछ अंश का भी हिंदी में अनुवाद किया था। उर्दू में स्वयं 'रसा' उपनाम से कविता करते थे, और अन्य कवियों के अच्छे-अच्छे गजलों का एक संग्रह 'गुलज़ारे-पुरबहार' के नाम से प्रकाशित भी किया था । सन् १८८३ ई० में 'कानून ताजीरात शौहर' अदालती उर्दू में 'लिखा था, जिसका तारीखी निता फारसी में लिखा है। इसे उन्होंने एक दिन रात के समय दो तीन घण्टे में लिखवा दिया था। खुशी पर पन्द्रह पृष्ठों का एक बड़ा लेख लिख डाला है, जो बोलचाल की उर्दू में है। 'हिंदी भाषा में प्राचीन तथा वर्तमान भाषाओं के नमूने संगृहीत किए हैं । पञ्जाबो, बैसवाड़ी, बङ्गला आदि की कविताओं के उदाहरण तथा अनेक स्थानों को बोली के नमूने गद्य में दिए हैं। जी० एफ. निकौल तथा फ्रेडरिक पिनकॉट नामक अंग्रेजों के हिंदी भाषा के पत्र भी उद्धृत कर अंग्रेजो-हिंदो का नमूना दिखलाया है। इसके अनंतर बिहारी भाषा के गद्य तथा पद्य के नमूने भी मनोरंजक हैं। अन्त में हिन्दी की उन्नति पर अपना लेक्चर तथा 'कविताष्टक' देकर पुस्तक समाप्त किया है। “सङ्गोतमार' में गान-विद्या का इतिहास तथा उसके भेदोपभेद का संक्षिप्त विवरण दिया गया है। नवोदिता चंद्रिका में 'कृष्ण भोग' छपा है, जिसमें अनेक प्रकार के खाद्य पदार्थ बनाने का