पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/२४०

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२३२ [भारतेन्दु हरिश्चन्द्र सेलेक्ट कमेटी द्वारा रिपोर्ट ईश्वर के पास भेजवाई गई है, पर उस पर क्या आज्ञा हुई उस विषय पर लिखा है कि 'जब हम भी वहाँ जायेंगे और फिर लौटकर आ सकेंगे तो पाठक लोगों को बतलावेंगे या आप लोग कुछ दिन पीछे आप ही जानेंगे।' तीसरे लेख में नीच जाति के उच्च तथा उच्च के नीच होने की व्यवस्था दिलाते हुए दिखलाया गया है कि 'सबै जाति गोपाल की' है। परिहासिनी में भी इसी प्रकार के लेख संगृहीत हैं, जिनमें एक पाँचवाँ पैग़म्बर भी है। वेश्या स्तोत्र, अंग्रेज स्तोत्र, कंकड़ स्तोत्र आदि इसी प्रकार के अनेक छोटे-छोटे गद्य-पद्यमय लेख हैं। अंधेरनगरी, नीलदेवी आदि नाटकों में भी अवसर पाते ही व्यंग्य तथा परिहास की छटा दिखलाते रहे है। 'अमानत' के 'इन्दर सभा' के वजन पर खियानत' नाम से एक 'बन्दर सभा' भी लिखा है। यह अप्राप्त है, पर इसमें के कुछ गाने 'मधुमुकुल' आदि संग्रहों में मिलते हैं। उपन्यास और आख्यायिका की ओर इनकी दृष्टि बहुत बाद फिरी, और अवस्था कम प्राप्त होने से यह इस ओर विशेष कुछ न कर सके । गद्यपद्यमय 'रामलीला' लिखी है, जिसमें अयोध्या- कांड तक की लीला सन्निवेशित है। हम्मीरहठ का एक परिच्छेद लिखा था, पर उसे वे पूर्ण न कर सके। बंकिमचंद्र चैटर्जी के 'राजसिंह' का अनुवाद अधूरा होकर रह गया। इसे बाद को बा० राधाकृष्णदास जी ने पूरा किया था। 'एक कहानी कुछ आप बीती कुछ जग बीती' में अपना कटु अनुभव लिख रहे थे पर यह भी अपूर्ण रह गई। 'मदालसोपाख्यान' पूरा छप गया है । यद्यपि भारतेन्दु जी ने एक भी पूरा उपन्यास नहीं लिखा है पर एक पत्र से ज्ञात होता है कि इन्हीं के उत्साह दिलाने से उस