पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/२४९

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समाचार पत्र] २४१ में वे परिश्रम भी अधिक करते थे। इनके लेख भी एशियाटिक सोसाइटी के जर्नल में छपते थे। काशी का एक विशद इतिहास लिखने की इनकी बहुत इच्छा थी और इसी के लिए पं० शीतल- प्रसाद जी को साथ लेकर इन्होंने काशी के अनेक मंदिरों, घाटों आदि की प्रशस्तियों को पढ़कर उनकी प्रतिलिपियाँ तथा फोटो लिए थे पर स्वयं उनके अल्पकाल में ही स्वर्गवासी हो जाने के कारण यह कार्य न हो सका । समाचार पत्र हिन्दी में सबसे पहिले राजा शिवप्रसाद को सहायता से सन् १८४५ ई० में 'बनारस अखबार' निकला । यह रद्दी से काग़ज पर पं० गोविन्द रघुनाथ थत्ते के संपादकत्व में पहिले प्रकाशित होता था। इसकी भाषा उर्द-मिश्रित थी और उसकी लेखन-शैली में भी उर्दूपन अधिक था । सन १८५० ई० में तारामोहन मित्र ने 'सुधाकर' पत्र निकाला, जो कुछ दिन चलकर बंद हो गया। प्रत्येक संख्या के पहिले पृष्ठ पर पत्र के नाम के नीचे लीथो ही में काशी के दृश्यों के चित्र रहते थे, जैसे पंचगंगा घाट, क्वीन्स- कालेज आदि । लोथो में और भी चित्र कभी कभी छपते थे। इसी पत्र के नाम पर सुप्रसिद्ध ज्योतिर्विद पं० सुधाकर जी के पिता ने इनका नामकरण किया था। इस पत्र की हिन्दी बनारस अखबार से विशेष सुधरी हुई थी । बा० बालमुकुन्द गुप्त लिखते हैं कि 'श्री लल्लूलाल जी के प्रेमसागर की भाषा उनके लिए पाठकों के मनोरंजनार्थ इन दोनों पत्रों से कुछ उदाहरण दे दिये जाते हैं, जिनसे वे स्वयं दोनों की भाषाओं का मिलान कर सकें। बनारस अखबार (१ जनवरी सन् १८५२ ई० की संख्या ) से उद्धृत- १६