पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/३०१

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गीवि-काव्य] २६५ लाई गेह उठाइ कोउ बिधि जीव न गए अदेस । 'हरीचन्द' मधुकर तुव श्राए जागी सुनत सँदेस ।। हिन्दी साहित्य में गोपी-उद्धव संवाद को लेकर बहुतेरी अनूठी अनूठी उक्तियाँ कही गई हैं । यह घटना उस समय की है जब श्रीकृष्ण भगवान वृन्दावन से लोक-पीड़क बाल-हत्याकारी नृशंस कंस को मारने के लिये मथुरा चले आए थे, और वहीं रह गए थे। इन्होंने कुछ दिन अनंतर गोपियों को ज्ञान सिखलाने के लिए उद्धव जी को भेजा था। इस अमर घटना को लेकर कितने भ्रमर- गीत निर्मित हुए हैं। इसी को लेकर भक्ति तथा ज्ञान मार्गअर्थात् सगुण तथा निर्गुण उपासना पर भी कवियों तथा भक्तों ने खूब उक्तियाँ कही हैं। सभी में अंततः उपासना ही अधिक लोकप्रिय साबित हुई है । गोपियों की विजय जनसाधारण की साकार उपा- सना के प्रति विशेष श्रद्धा प्रकट करता है। उद्धव जी ज्ञानमार्ग के प्रकांड पंडित थे और उनकी हार ज्ञानमार्ग की गूढता स्पष्ट करते हुए बतला रही है कि यह दुरूह विरले ही लोगों के लिये है। एक सरस है और दूसरा नीरस । पहिलो होमियोपैथी की मीठी गोली है और दूसरी है कषाय, पर हैं दोनों ही लाभकारी । श्री- कृष्ण जी ने उद्धव ही को क्यों भेजा था, केवल इसीलिए कि उनका ज्ञानगर्व गोपियों के प्रेम को तल्लीनता तथा एकनिष्ठा और सर. सता में मिट जाय । देखिए गोपियाँ कहती हैं- पिय सों प्रीति लगी नहिं छुटै । ऊधो चाहौ सो समझाश्रो अब तो नेह न टूटै।। सुन्दर रूप छाँड़ि गीता को ज्ञान लेह को कूट। 'हरीचन्द' ऐसो को मूरख सुधा त्यागि बिष लूटै । साफ जवाब दे दिया गया है कि गीता का ज्ञान लेकर क्या किया जायगा । गीता गानेवाले की सौंदर्य सुधा को छोड़कर कौन