पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/३९४

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३८८ [ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र दीजिए देखिए छपता है कि नहीं। चन्द्रिका भेजने का प्रबन्ध आदि सब अब पं० गोपीनाथ जी के जिम्मे है । मैं उनसे पूछगा कि क्यों नहीं गई और भिजवा दूंगा। संसार में भले बुरे सब प्रकार के लोग हैं कोई किसी की निन्दा, कोई स्तुति करता है। हम तो केवल तटस्थ हैं, हमारे चित्त में कल्मष तो तब आप को प्रतीत करना था जब भाप का प्रतिवाद न छपता । श्री वन से हमें कई पुस्तके मँगाना है आप कृपापूर्वक उसका प्रबन्ध कर दें तो हम नामादिक लिख भेजें। और सर्व कुशल है। शनि आप का दासानुदास हरिश्चन्द्र ५-उक्त सज्जन को पत्र शतकोटि दण्डवत् प्रणामानन्तरं निवेदयति- बाबू राजेन्द्रलाल मित्र ने एक प्रबन्ध में इस बात का खडन किया है कि महाप्रभु जी माध्वमतावलम्बी थे इसमें प्रमाण, उन्होंने यह माज्ञा किया था कि “यत श्रीधर विरुद्धं तन्नामास्माकमादरणी. यम् ।" वह कहते हैं कि माध्वमत के ग्रंथ मात्र हो श्रीधर के विरुद्ध हैं । इसका क्या उत्तर है ? वैष्णव दीक्षा प्राप ने कब और किससे लिया था ? मै इन दिनों महाप्रभु जी के चरित्र का नाटक लिखता हूँ उसी के हेतु इन बातों के जानने की जल्दी है। दासानुदास हरिश्चन्द्र ६-श्रीराधा कृष्णदास जी उर्फ बच्चा बाबू को लिखा गया अजीज़ अज़ जान मन' बच्चा बहादुर । मेरे दिल के सदफ के बेबहा दुर । १ मेरी जान से अधिक प्रिय । २ सीप । अमूल्य । 3 ४ मोती।