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पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/९६

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भारतेंदु हरिश्चन्द्र वे पुस्तकों का मूल्य नाम मात्र को रखते थे और अधिकतर उन्हें ना मूल्य ही लोगों में बाँटा करते थे। २०० रु० के मूल्य की पुस्तकें तो केवल बलिया इंस्टिट्यूट ही को एक साथ एक बार भेजी थी। भारतेन्दु जी पुरस्कार दे देकर लोगों को पुस्तकें निर्माण कर- ने में उत्साहित करते थे । फ्रांस में जो युद्ध होता था उसका वर्णन नाटकाकार लिखे जाने के लिये ४००) रु० और सर विलियम म्योर की जीवनी लिखने के लिये २५०) रु० तथा संस्कृत भाषा के दो सौ कवियों की जीवनी लिखने के लिए प्रति कवि १० रुपए पुरस्कार देने का कवि-वचन सुधा में विज्ञापन निकाला था। इसके सिवा जन-साधारण के हितार्थ तथा सरकारी कामों में भी सहस्रों रुपये चंदा देते थे। सन् १८७२ ई० में मोयो मेमोरियल सिरीज़ में १५००) रुपए दिए थे। होमियोपैथिक डिसपेंसरी चलाने के लिए १८६८ ई० से १८७३ ई० तक १२०) रुपया प्रति वर्ष देते रहे। “सोलजर्सफंड' में १००), गुजरात जवनपुर रिलीफ फंड में ७०) रु. और "स्टू जर्स होम' में ५०) रू० दिया था। इसी प्रकार प्रिंस आफ वेल्स हॉस्पिटल, कारमाइकेललाइ. ब्रेरी, नेश्नल फंड इत्यादि अनेक कार्यो में चंदा दिया करते थे। पजाब विश्वविद्यालय' के संस्थापित होने के समय भारतेन्दु जी ने २५०) रुपये से उसकी सहायता की थी और सन् १८८२ ई० में जब उस विद्यालय को पूर्ण अधिकार प्राप्त हुआ तो उस समय भी रजिस्ष्टार साहिब ने इनसे तथा अन्य महाशयों से विशेष द्रव्य सहायता के निमित्त प्रार्थना की थी। भारतवर्ष के सभी प्रांत के स्कूलों से जब बालिकाएँ परीक्षों त्तीर्ण होती थीं तो वे उन्हें बहुमूल्य साड़ी