पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/९७

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पूवज-गण इत्यादि पारितोषिक दिया करते थे। इनके स्कूल के पढ़े हुए छात्र दामोदरदास जब बी० ए० परीक्षा की प्रथम श्रेणी में परीक्षोत्तीर्ण हुए थे तो उन्हें १००) की सोने की घड़ी तथा ३००)रु० की सोने की चेन इन्होंने पारितोषिक में दिया था। काशी की आचार्य परीक्षा में उत्तीर्ण बालकों को भी घड़ो दिया करते थे। हमारे पंडित अम्बिकादत्त व्यास को भी माहित्याचार्थ को परीक्षा पास होने पर इन्होंने एक घड़ी दी थी। सत्यप्रियता भारतेन्दु जी सत्यप्रिय थे। वे स्वयं जानते थे कि 'सत्यधर्म पालन हँसी खेल नहीं है' और 'सत्य पथ पर चलने वाले कितना कष्ट उठाते हैं' पर इन्होंने यथाशक्ति इस व्रत को आजन्म निबाहा । स्वरचित सत्यहरिश्चन्द्र में इस पर विशेष तक करते हुए लिखा है कि- चंद टरै सूरज टरै, टरै जगत व्यौहार । पै दृढ़ श्री हरिचंद को, टरै न सत्य विचार ।। भारतेन्दु जी ने एक महाजन से एक कटरनाव सी कुछ नगद रुपये लेकर तीन सहस्र की हुँडी लिख दी थी। उनका इन पर सब से पहिले दावा हुआ है। यह मुक़दमा अलीगढ़ विश्व- विद्यालय के संस्थापक सर सैयद अहमद साहब सदर आला को कचहरी में था । देश हितैषिता के स्वयं व्रती होने के कारण उन्होंने प्रसिद्ध देशहितैषी भारतेन्दु जी को इस कष्ट में देखकर इन्हें अपने पास बुलाकर बैठाया और पूछा कि 'आप ने अंसल में इनसे कितने रुपये पाए।' भारतेन्दुजी ने उत्तर दिया कि 'पूरे रुपये पाये।' सैयद साहब ने पूछा कि 'जो कटर इन्होंने लगा दिया है वह कितने रुपये का है। उत्तर दिया कि 'जितने