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पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/९९

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पूर्वज-गण बैठे हुए थे कि ज़नाने में से राय साहब को भोजन करने के लिये मजदूरनी बुलाने आई। राय साहब ने कह दिया कि 'मैं पाखाना फिर लूगा तब मैं खाऊँगा।' यह सुनकर भारतेंदु जी मुख में रुमाल लगा कर भी हँसी न रोक सके थे। श्री जगन्नाथ जी को फूल टोपी इतनी बड़ी होती है कि एक आदमी उसमें छिप सकता है। इन्होंने एक दिन यह प्रबन्ध किया कि आप उसके भीतर छिप गये और इनके छोटे भाई ने इनके कथनानुसार लोगों से कहा कि श्री जगदीश का यह प्रत्यक्ष चमत्कार देखो कि उनकी फूल टोपी आप से आप चलती है। टोपी भी चलने लगी और लोग आश्चर्य में डूब गए । अंत में अब आपने टोपी उलट दी तब कुल रहस्य सब पर प्रकट हो गया। पहिली अप्रैल को अंग्रेजी में 'फूल्सडे' (मूर्यो का दिन) कहते हैं । यह हम लोगों के होली के त्यौहार से कुछ मिलता जुलता है। इस दिन दूसरों को मूर्ख बनाने का प्रयत्न किया जाता है। भारतेन्दु जी ने ऐसा सफल प्रयत्न कई वर्षों तक किया था। एक बार आपने नोटिस दी कि विजयनगर की कोठी में एक युरोपीय विद्वान सूर्य और चन्द्र को पृथ्वी पर प्रत्यक्ष बुलाकर दिखलावेंगे लोग इस धोखे में आ गए और वहाँ पहुँच कर जब कुछ न देखा तब लज्जित होकर हँसते हुए अपने अपने गृह लौट गए । एक वर्ष हरिश्चन्द्र स्कूल में एक प्रसिद्ध गवैये का गाना होने की सूचना निकाली जब सहस्रों मनुष्य वहाँ एकत्र हुये तब पर्दा उठा और एक मसखरा मूों की टोपी पहिरे उल्टा तानपूरा लिये गाता हुआ नजर आया। तीसरी बार आपने एक मित्र के नाम से सूचना निकाली कि एक मेम रामनगर के सामने खड़ाऊँ पर चढ़कर गंगा पार करेगी। अच्छा खासा मेला जम गया पर सन्ध्या होने पर सब को ज्ञात हुआ कि आज एप्रिल फूल्सडे है।