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पृष्ठ:भारत का संविधान (१९५७).djvu/१०१

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भारत का संविधान

 

भाग ५—संघ—अनु॰ ७३-७६

(२) जब तक संसद् अन्य उपबन्ध न करे तब तक इस अनुच्छेद में किसी बात के होते हुए भी कोई राज्य तथा राज्य का कोई पदाधिकारी या प्राधिकारी उन विषयों में, जिनके संबंध में संसद् को उस राज्य के लिये विधि बनाने की शक्ति है, ऐसी कार्यपालिका शक्ति का या कृत्यों का प्रयोग करता रह सकता है जैसे कि वह राज्य या उसका पदाधिकारी या प्राधिकारी इस संविधान के प्रारम्भ से ठीक पहिले कर सकता था।

मन्त्रि-परिषद्

राष्ट्रपति को सहा-
यता और मंत्रणा
देने के लिये मंत्रि-
परिषद्
७४. (१) राष्ट्रपति को अपने कृत्यों का सम्पादन करने में सहायता और मंत्रणा देने के लिये एक मंत्रि-परिषद् होगी जिसका प्रधान प्रधान-मंत्री होगा।

(२) क्या मंत्रियों ने राष्ट्रपति को कोई मंत्रणा दी, और यदि दी तो क्या दी, इस प्रश्न की किसी न्यायालय में जाँच न की जायेगी।

मंत्रियों सम्बन्धी
अन्य उपबन्ध
७५. (१) प्रधान मंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करेगा तथा अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति प्रधान-मंत्री की मंत्रणा पर करेगा।

(२) राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यन्त मंत्री अपने पद धारण करेंगे।

(३) मंत्रि-परिषद् लोक-सभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होगी।

(४) किसी मंत्री के अपने पद ग्रहण करने से पहिले राष्ट्रपति उस से तृतीय अनुसूची में इस के लिये दिये हुए प्रपत्रों के अनुसार पद की तथा गोपनीयता की शपथें करायेगा।

(५) कोई मंत्री जो निरन्तर छः मास की किसी कालावधि तक संसद् के किसी सदन का सदस्य न रहे उस कालावधि की समाप्ति पर मंत्री न रहेगा।

(६) मंत्रियों के वेतन तथा भत्ते ऐसे होंगे, जैसे, समय समय पर, संसद् विधि द्वारा निर्धारित करे तथा जब तक संसद् इस प्रकार निर्धारित न करे तब तक ऐसे होंगे जैसे कि द्वितीय अनुसूची में उल्लिखित हैं।

भारत का महान्यायवादी

भारत का महा
न्यायवादी
७६. (१) उच्चतमन्यायालय के न्यायाधीश नियुक्त होने की प्रर्हता रखने वाले व्यक्ति को राष्ट्रपति भारत का महान्यायवादी नियुक्त करेगा।

(२) महान्यायवादी का कर्त्तव्य होगा कि वह भारत सरकार को ऐसे विधि संबंधी विषयों पर मंत्रणा दे तथा ऐसे विधि रूप दूसरे कर्तव्यों का पालन करे जो राष्ट्रपति उसे समय समय पर भेजे या सौंपे, तथा उन कृत्यों का निर्वहन करे जो इस संविधान अथवा अन्य किसी तत्समय प्रवृत्त विधि के द्वारा या अधीन उसे दिये गये हों।

(३) अपने कर्त्तव्यों के पालन के लिये महान्यायवादी को भारत राज्य-क्षेत्र में के सब न्यायालयों में सुनवाई का अधिकार होगा।

(४) महान्यायवादी राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यन्त पद धारण करेगा तथा ऐसा पारिश्रमिक पायेगा जैसा राष्ट्रपति निर्धारित करे।