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भारत का संविधान

 

भाग ५—संघ—अनु॰ ७७–८०
सरकारी कार्य का संचालन

भारत सरकार के
कार्य का संचालन
७७. (१) भारत सरकार की समस्त कार्यपालिका कार्यवाही राष्ट्रपति के नाम से की हुई कही जायेगी।

(२) राष्ट्रपति के नाम से दिये और निष्पादित आदेशों और अन्य लिखतों का प्रमाणीकरण उस रीति से किया जायेगा जो राष्ट्रपति द्वारा बनाये जाने वाले नियमों[१] में उल्लिखित हो तथा इस प्रकार प्रमाणीकृत प्रदेश या लिखत की मान्यता पर आपत्ति इस आधार पर न की जायेगी कि वह राष्ट्रपति द्वारा दिया या निष्पादित आदेश या लिखत नहीं है।

(३) भारत सरकार का कार्य अधिक सुविधापूर्वक किये जाने के लिये तथा मंत्रियों में उक्त कार्य के बंटवारे के लिये राष्ट्रपति नियम बनायेगा। राष्ट्रपति को जान-
कारी देने आदि
विषयक प्रधान-
मंत्री के कर्त्तव्य

७८. प्रधान-मंत्री का—

(क) संघ कार्यों के प्रशासन संबंधी मंत्रि-परिषद् के समस्त विनिश्चयों तथा विधान के लिये प्रस्थापनायें राष्ट्रपति को पहुँचाने का,
(ख) संघ कार्यों के प्रशासन संबंधी तथा विधान विषयक प्रस्थापनात्रों सम्बन्धी जिस जानकारी को राष्ट्रपति मंगावे उस को देने का, तथा
(ग) किसी विषय को, जिस पर किसी मंत्री ने विनिश्चय कर दिया हो किन्तु मंत्रि-परिषद् ने विचार नहीं किया हो, राष्ट्रपति की अपेक्षा करने पर परिषद् के सम्मुख विचार के लिये रखने का, कर्त्तव्य होगा।

अध्याय २—संसद्
साधारण

संसद् का गठन ७९. संघ के लिये एक संसद् होगी जो राष्ट्रपति और दो सदनों से मिल कर बनेगी जिनके नाम क्रमशः राज्यसभा और लोकसभा होंगे।

राज्यसभा की
रचना
८०. (१) राज्य सभा—

(क) राष्ट्रपति द्वारा खंड (३) के उपबन्धों के अनुसार नामनिर्देशित किये जाने वाले बारह सदस्यों से, तथा
(ख) राज्यों के [और संघ राज्य क्षेत्रों के] दो सौ अड़तीस से अनधिक प्रतिनिधियों से, मिल कर बनेगी।

(२) राज्य सभा में राज्यों के [२][और संघ राज्य क्षेत्रों के] प्रतिनिधियों द्वारा भरे जाने वाले स्थानों का बंटवारा चतुर्थ अनुसूची में अन्तर्विष्ट तद्विषयक उपबन्धों के अनुसार होंगा।

  1. देखिये अधिसूचना संख्या एस॰ आर॰ ओ॰ १६७, तारीख १९ जून, १९५०, भारत का गज़ट भाग २, अनुभाग ३, पृष्ठ १७३, यथा समय समय पर संशोधित।
  2. संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम १९५६, धारा ३ द्वारा जोड़े गये।