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पृष्ठ:भारत का संविधान (१९५७).djvu/६९

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भारत का संविधान

 

भाग ३—मूल अधिकार—अनु॰ ३१

[][(२) कोई सम्पत्ति, सार्वजनिक प्रयोजन के सिवाय, और ऐसी किसी विधि के, जो इस प्रकार अर्जित या अधिग्रहीत सम्पत्ति के लिये प्रतिकर के लिये उपबन्ध करती है और या तो प्रतिकर की राशि को नियत करती है या उन सिद्धांतों और रीति का उल्लेख करती है जिन से प्रतिकर निर्धारित होना है और दिया जाना है, प्राधिकार के सिवाय अनिवार्यतः अर्जित या अधिग्रहीत न की जाएगी; और किसी ऐसी विधि पर किसी न्यायालय में इस आधार पर आपत्ति नहीं की जायेगी कि उस विधि द्वारा उपबन्धित प्रतिकर पर्याप्त नहीं है।

(२) जहां किसी सम्पत्ति के स्वामित्व के या कब्ज़ा रखने के अधिकार का हस्तान्तरण राज्य या ऐसे किसी निगम को, जो कि राज्य के स्वामित्वाधीन या नियंत्रणाधीन है, करने के लिये उपबन्ध विधि नहीं करती है वहां इस बात के होते हुए भी कि वह किसी व्यक्ति को उसकी सम्पत्ति से वंचित करती है उसकी बाबत यह न समझा जायेगा कि वह सम्पत्ति के अनिवार्य अर्जन या अधिग्रहण के लिये उपबन्ध करती है।]

(३) राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई कोई ऐसी विधि, जैसी कि खंड (२) में निर्दिष्ट है, तब तक प्रभावी नहीं होगी जब तक कि ऐसी विधि को, राष्ट्रपति के विचार के लिये रक्षित किये जाने के पश्चात्, उस की अनुमति न मिल गई हो।

(४) यदि इस संविधान के प्रारम्भ पर किसी राज्य के विधान-मंडल के सामने किसी लम्बित-विधेयक को, ऐसे विधान मंडल द्वारा पारित किये जाने के पश्चात्, राष्ट्रपति के विचार के लिये रक्षित किया जाता है तथा उस की अनुमति मिल जाती है तो इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी इस प्रकार अनुमत विधि पर किसी न्यायालय में इस आधार पर आपत्ति नहीं की जायेगी कि वह खंड (२) के उपबन्धों का उल्लंघन करती है।

(५) खंड (२) की किसी बात से—
(क) ऐसी किसी विधि को छोड़ कर, जिस पर कि खंड (६) के उपबन्ध लागू होते हैं, किसी अन्य वर्त्तमान विधि के उपबन्धों पर, अथवा
(ख) एतत्पश्चात् राज्य जो कोई विधि—
(१) किसी कर या अर्थ-दण्ड के आरोपण या उद्ग्रहण के प्रयोग जन के लिये बनाये उस के उपबन्धों पर, अथवा
(२) सार्वजनिक स्वास्थ्य की उन्नति के अथवा प्राण या सम्पत्ति के संकट-निवारण के लिये बनाये गये उस के उपबन्धों पर, अथवा
(३) भारत डोमीनियन की अथवा भारत की सरकार और अन्य देश की सरकार के बीच किये गये करार के अनुसरण में, अथवा अन्यथा, उस सम्पत्ति के लिये बनाये जो विधि द्वारा निष्क्राम्य सम्पत्ति घोषित की गई है उस के उपबन्धों पर, भाव नहीं होगा।

  1. संविधान (चतुर्थ संशोधन) अधिनियम, १९५५, धारा २ द्वारा प्रस्थापित किया गया।