पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/११५

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अपहृता नारियों के लिए अपील १८ फरवरी, १९४८ देश की हजारों दुखित औरतों के लिए जो जोरदार अपील की जा रही है, उनके पक्ष में मैं भी अपनी ओर से कुछ कहना चाहता हूँ। पिछले दिनों पूर्वी और पश्चिमी पंजाब और सीमाप्रान्त में जो अराजकता फैली थी और जिसने काश्मीर की सुन्दर वादी के कुछ भाग और जम्मू प्रान्त को भी घेर लिया था, उसमें निर्दोष औरतों और बच्चों के अपने सम्बन्धियों से जबरदस्ती से छीनकर दूर किये जाने और उन पर तरह-तरह के जुल्म-अत्याचार करने से जितनी हमारी इज्जत गिरी, उतनी किसी और घटना से नहीं गिरी होगी। इस प्रकार की दुर्घटनाएँ तो जानवरों के रहन-सहन के नियमों के अनुसार भी नहीं हैं। ऐसे कुकर्म समाज और सभ्यता की परम्पराओं के बिलकुल विपरीत है। इसलिए ऐसे लोगों के लिए इस दुनिया में कोई स्थान नहीं हो सकता। और हमारा कर्तव्य है कि सभ्यता के विरुद्ध ऐसे आचरण का हम दृढ़तापूर्वक दमन करें। जब में इन माताओं और बहनों की दुर्दशा और उनके कष्टों का ख्याल करता हूँ तो मेरा हृदय शोक और पीड़ा से भर जाता है । अच्छे घराने की पढ़ी-लिखी स्त्रियाँ, जिनका जीवन खुशहाली की गोद में पला, जो शान्ति से अपने परि- वार वालों के साथ अपना सुरक्षित जीवन व्यतीत करती थीं, बहुत-सी स्त्रियाँ