पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/१७९

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१६२ भारत की एकता का निर्माण काश्मीर और हैदराबाद का भारी संकट पड़ा, उसमें सबसे बड़ा हैदराबाद का था । जिसके कारण हमारे देश के अन्दर की कौमी हवा इतना बिगड़ रही थी कि उसको ठीक करने में बहुत दिक्कत मालूम हो रही थी। यह सब हमने किसी- न-किसी तरह संभाल लिया। बीच में और भी आपत्तियाँ आई कि उनसे बचाव करना कठिन हो गया। देश में ऐसी कारवाही हुई कि गान्धी जी की मृत्यु इस प्रकार से हुई। हमें बड़ी शर्म से कबूल करना पड़ता है कि इस तरह की बात से हमें बहुत नुकसान हुआ। जिसे हम सुधार नहीं सकते । एक तो विभाजन की आफत, और दूसरी बापू के मरने की। जिस समय हमें उनकी सलाह, उनके साथ और उनके आशीर्वाद की सबसे अधिक जरूरत थी, उसी समय वह हमसे छिन गए । लेकिन मुझे कहना पड़ेगा दुनिया की दृष्टि में और उनकी अपनी दृष्टि में, यह मृत्यु जिस तरह हुई, बहुत बहादुरी की मृत्यु थी। काश कि मेरी भी ऐसी ही मृत्यु हो। जिन लोगों ने ऐसा किया, उनको अगर पश्चात्ताप न होगा, तो उनका किसी तरह भी कल्याण नहीं होगा और साथ ही हमारा भी। यह बहुत बड़ी आपत्ति थी, जिसमें से हम अभी गुज़र कर आए हैं। हैदराबाद में इतनी जबर्दस्त आपत्ति होते हुए भी सारे हिन्दुस्तान के हिन्दू और मुसलमानों में कोई फिसाद न हुआ । इसका मतलब यह है कि हिन्दुस्तान में रहने वाली दोनों जातियों में परस्पर एक प्रकार का विश्वास पैदा हो गया है, और हम शान्ति से अपना काम कर सकते हैं। अब हम यह चाहते हैं कि इन अनुभवों से पाकिस्तान वाले भी समझदारी से काम लें और हमारे मामलों में दखल न दें। क्योंकि उनके दखल देने से हिन्दोस्तान में रहने वाले मुसलमानों को परे- शानी होती है । पाकिस्तान की तरफ से उन्हें कोई मदद तो मिलती नहीं, और उल्टा नुकसान होता रहता है। इससे हमको भी नुकसान होता है, क्योंकि उस हालत में हम अमन और चैन से बैठ कर कोई काम नहीं कर सकते । एक बरस में हमने जो काम किया, वह तो ठीक ही है। समझो तो यह में एक सफाई दे रहा हूँ। हाँ, तो हमने हिन्दुस्तान को एक बना दिया। पर इसी से काम नहीं बनता। अभी तो हमें एक मजबूत एकता की जरूरत है। अभी क्या आप कह सकते हैं कि एक साल में जो सारा नक्शा बदला है, वह पक्का बन गया है ? उसका एक ही उदाहरण में देता हूँ। जब गान्धी जी की तब कोल्हापुर स्टेट के राजा के हाथों से हमने सत्ता ले ली थी और वहाँ मृत्यु हुई,