पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/२२०

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(१५) अलाहाबाद युनिवर्सिटी का कन्वोकेशन भाषण २५ नवम्बर, १९४८ गवर्नर साहिबा, वाइस चांसलर साहब, नवस्नातको, विद्याथियो और बनो, आपने इस कन्वोकेशन में इकट्ठे हुए मान्य जनों के सामने प्रवचन देने के लिए मुझे बुला कर, और मुझको 'डाक्टर आफ लाज' की डिग्री देकर मेरा जो सम्मान किया है, उसके लिए मैं आपका आभारी हूँ। जब मैं उन मान्य व्यक्तियों और योग्य पुरुषों का ध्यान करता हूँ, जिन्होंने पूर्व काल में आपके सामने प्रवचन दिए हैं और जिन्हें आपकी तरफ से आनरेरी डिग्रियां मिली है, तो मैं अपने आपको एक अपरिचित समाज में पाता हूँ। स्कूल कालेज की पढ़ाई में मैंने कोई खास नाम पाया हो, मैं कोई ऐसा दावा नहीं करता। मैंने जो कुछ पाठ पढ़े हैं, वे जीवन के महान विश्वविद्यालय में पड़े हैं। में विद्वान होने का कोई दावा नहीं करता। कला या साइन्स के विशाल गगन में भी मैंने कोई उड़ान नहीं भरी है। मेरा काम तो कच्ची झोपड़ियों में और गरीब किसानों के खेतों, ऊसर जमीनों या शहरों के गन्दे मकानों और मोरियों में रहा है। सार्वजनिक जीवन में भी मैं कोई नीतिज्ञ या कोई पालि- टीशन नहीं, बल्कि मार्क एन्टनी की तरह एक सीधा-सादा अक्खड़ आदमी रहा हूँ। आज ये सम्मानित उपाधि आपने मुझे दी है। वह मेरे दिल और दिमाग के किन्हीं विशेष गुणों की प्रशंसा में नहीं, बल्कि साधारण आदमियों के उन