पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/२८२

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फर्ज समझता संयुक्त राजस्थान का उद्घाटन करते हुए २५७ तारीफ़ की जानी चाहिए। यदि सच्चे दिल से उन लोगों ने साथ न दिया होता, तो आज हिन्दुस्तान का इतिहास जिस तरह बदल रहा है, वह इस तरह बदल नहीं सका होता । बेसमझ लोग उसकी कदर न करें, तो इसमें किसी का कुछ आता-जाता नहीं। मैं तो उसकी पूरी कदर करता हूँ और सारे हिन्दुस्तान में इस बात की कदर कराने की कोशिश करता हूँ। क्योंकि ऐसा करना मैं अपना । दुनिया जिस रास्ते पर चल रही है, उस रास्ते पर हमें नजर रखनी है और सोचना है कि हमें कहां जाना है। दुनिया में हमारी जगह कहां रहनी चाहिए, हमारा पुराना इतिहास क्या है, पुरानी संस्कृति क्या है, भारत का भविष्य क्या होना चाहिए, इन सब चीज़ों के बारे में राजा महाराजाओं के साथ बैठकर मैंने एक दो दफ नहीं, बल्कि अनेक दफा विचार किया है। हमने समझ लिया कि हिन्दुस्तान के लिए आज जो सब से अच्छा रास्ता है, वही हमें पकड़ना है, और वही हमने पकड़ा भी। इसीलिए आज हिन्दुस्तान का गौरव और हिन्दुस्तान की प्रतिष्ठा दुनिया में बढ़ रही है। और जिस रास्ते पर, जिस तेजी से हम चल रहे हैं, उसी रास्ते पर, उसी तेजी से हम चलते जाएंगे, तो हमारा भविष्य उज्ज्वल है । उसमें जिन लोगों ने त्याग किया है, उनको उसका पूरा बदला मिल जाएगा। दुनिया में आखिर सब से बड़ी चीज़ क्या है ? धन कोई बड़ी चीज नहीं है, न सत्ता ही कोई बड़ी चीज है। दुनिया में सब से बड़ी चीज इज्जत या कीति है । आखिर महात्मा गान्धी के पास और क्या चीज़ थी? उनके पास न कोई राजगद्दी थी, न उनके पास शमशेर थी, न उनके पास धन था। लेकिन उनके त्याग और उनके चरित्र की जो प्रतिष्ठा थी, वह और किसी के पास नहीं है। वही हमारे हिन्दुस्तान की संस्कृति है। आज भी हिन्दो- स्तान के राजा-महाराजाओं ने अपनी रियासत के लिए, अपने लोगों के लिए त्याग किया है। वे सदा से ऐसा करते आए हैं और करते रहेंगे। तो इस मौके पर मैं एक दफा फिर आप लोगों का शुक्रिया अदा करता हूँ और मैं उम्मीद करता हूँ कि आप लोग आगे बननेवाले इतिहास की ओर भी तटस्थ नहीं रहेंगे और न इस तरह से रहेंगे, जिससे आपके दिल साफ न हो। मैं उम्मीद करता हूँ कि आप लोगों ने जिस तरह से यह त्याग किया है, इसी से आगे तरह इतिहास में भी आप देश का साथ देते रहेंगे । अब मैं आप लोगों को इस बात का स्मरण कराना चाहता हूँ कि हमारे हिन्दुस्तान में जो गुलामी आई, वह किस तरह से आई और वह इतनी भा०१७