पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/३०८

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अभिनन्दन समारोह में ज्यादा पसन्द करते हैं। लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि सदियों की गुलामी, जो हमारे छाती पर बैठ गई थी, उसका बोझ इतना भारी था कि जब इस बोझ को किसी तरह से हमने उठाकर फेंक दिया, तो हम इतना थक गए कि अपने साँस पर काबू रखने की शक्ति भी हमारे पास नहीं रही । अभी भी वह पूरी तरह नहीं आई है। करीब-करीब मुर्दा में जान डाली गई है। चलने लायक तो हम अभी तक हुए ही नहीं हैं। अभी हमें चलना सीखना है । उसके पहले ही हम दौड़ने की कोशिश करेंगे, तो हमारे पैर टूट जाएँगे। कोई यह समझे कि मुल्क में जो भुखमरी का दुख है, वह हमें अज्ञात है, तो सारी जिन्दगी भर हमने काम क्या किया है ? हम इतने अज्ञानी होते, तब तो हम ऐसे ही नालायक होते, जैसे चर्चिल साहब ने एक दफा कहा था कि "आपने 'मैन आफ़ स्ट्राज़' (तिनके के आदमियों) के हाथ में भारत को सुपुर्द कर दिया है ।" लेकिन अब वह खुद भी महसूस करता है कि यह "मैन आफ स्ट्राज' नहीं हैं, इनमें कुछ तत्व है। लेकिन एक चीज आप को नहीं भूलनी चाहिए कि दुनिया में हर जगह पर आज दुख है । और जो चीज हमें चाहिए, वह है आर्थिक स्वतन्त्रता । वह हमारे पास नहीं है । यह केवल हमारे हाथ की बात नहीं है । दुनिया के जो बन्धन हमारे सामने, हमारे बीच में खड़े हुए हैं, उसमें से निकलना तो बड़ा विकट काम है । एक डीवैल्युएशन (मुद्रा का अब- मूल्यन) हुआ, उससे कितनी-कितनी मुश्किलात पैदा हुई ? बेचारा देहात में काम करनेवाला किसान या फैक्टरी में काम करनेवाला मजदूर और अन्य सामान्य लोगों को क्या मालूम पड़ता है कि ये कठिनाइयाँ क्या है ? लेकिन जो लोग इन कठिनाइयों से घबराते हैं, वे कुछ काम नहीं कर सकते। कितनी भी कठिनाइयाँ सामने हों, लेकिन इन्सान में ताकत दी गई है कि वह उन कठिनाइयों का मुकाबला करें। यह मर्दो का काम है, कायरों का काम नहीं है । तो हमें घबराना नहीं चाहिए। लेकिन आज कोई कहे कि हमने पालिया- मेंट तो बनाई और आजादी पा ली। लेकिन इस पालियामेंट में कोई गवर्नमेंट का सामना करनेवाले नहीं हैं। ठीक है, लेकिन यह पालियामेंट तो बच्चा है । हम पालियामेंट में केवल परदेशियों की नकल करना नहीं चाहते हैं। हमें हिन्दुस्तान के ढंग के अनुसार पालियामेंट बनानी है। गान्धी जी ने पालियामेंट के बारे में बहुत कुछ लिखा है, में उसका जिक्र यहाँ नहीं करना चाहता हूँ। लेकिन मैं यह कहना चाहता हूँ कि कम-से-कम जब तक हिन्दुस्तान मजबूत