पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/३१०

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अभिनन्दन समारोह में २८३ हो जाता है और नीति गई तो आत्मा भी गया। सब खत्म हो गया। तो उनके दुख के सामने देखें, तो ऐसा दुख तो बहुत कम आदमियों को पड़ा है । हमको भी नहीं पड़ा है। सो हम उस दुख का अन्दाज़ नहीं लगा सकते हैं। बहुत से लोग मेरे पास आते रहे । आज तो मैं ऐसी हालत में हूँ कि बहुत लोगों को मिल नहीं सकता। कई लोग गुस्से भी होते हैं कि मैं उनको मिल नहीं सकता। ठीक बात है, क्योंकि मैं तो चाहता हूँ कि मैं सब को मिलू और एक समय था कि मैं सुबह ५ बजे एक हजार आदमियों से मिलता था। बाग में घूमते-घूमते । लेकिन आज मैं वैसा नहीं कर सकता। तो जो कुछ मर्या- दित शक्ति है, उसका उपयोग करना हो तो वह आप लोगों की दया से ही हो सकता है । किसी को उसमें भला बुरा नहीं मान लेना चाहिए कि मैं मिल नहीं सकता हूँ, क्योंकि मैं पर्दे में रहनेवाला आदमी नहीं हूँ। तो आप समझ लीजिए कि मुझमें जो मर्यादित शक्ति बाकी है, वह सब आपके ही उपयोग की है। तो इस बारे में आप मुझे क्षमा कर दीजिए। लेकिन मैं कभी कभी बोलता हूँ। जो थोड़ा सा में कह रहा हूँ, उसको बराबर समझ लेना चाहिए । में कहता हूं कि सब साथ मिलकर कुर्बानी करके, आगे नहीं चले, तो हमारा काम होनेवाला नहीं है। । थोड़े आदमियों की शक्ति से काम लेने की बात कहो, थोड़े से आदमियों को सजा करने से काम होने वाला हो, तो हम लोग क्यों बैठे रहें ? क्योंकि हिन्दुस्तान में करोड़ों आदमी पड़े हैं । करोड़ों मर गए, पिछले दो तीन साल में । कुछ ही साल हुए, तीस लाख आदमी मर गए बंगाल के फैमीन (अकाल) में । तो चन्द आदमियों का फैसला करने में हमको कोई दिक्कत नहीं होगी, यदि उससे काम बन जाए तो। क्योंकि ज्यादा से ज्यादा लोगों का भला करने के लिए ही तो हम बैठे हैं। यह ठीक है कि हम अपनी बुद्धि से काम करते हैं। लोग कहें कि बुद्धि तो हम देते हैं और काम तुम करो तो काम बन नहीं सकेगा। हम भी काम को फेंक नहीं देते, उस पर सोचते भी हैं। जो काम हमने आज तक किया है, इतना न किया होता, तो दुनिया में भारत की जो इज्जत बढ़ रही है, वह न बढ़ी होती। जिस तरह से बड़ी-बड़ी कठिनाइयों में भी हमने मुल्क को इन दो सालों में संभाला है, उससे हमारी कुछ इज्जत बढ़ी है। लेकिन, यदि हमारे पेट में भूख लगी हो, तो बाहर कितना भी अच्छा कपड़ा पहन के और बाल ठीक करके हम घूमें, तो उससे कोई काम नहीं होता। वह पेट का खड्डा