पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/३४

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लखनऊ १८ जनवरी, १९४८ बहनो और भाइयो ! मेहरबानी करके अब कोई आवाज न करें, सब भाई-बहन शान्त हो जाएँ। बहुत दिनों के बाद आप लोगों से मिलने का मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ, इससे मुझे बहुत खुशी हुई है। आप लोगों से मिलने की ख्वाहिश तो बहुत दिनों से थी, लेकिन हम लोग ऐसी मुसीबतों में फंसे रहे कि किसी जगह पर आ-जा नहीं सकते थे। लेकिन इस बार चन्द दिनों के लिए मुझे आसाम और कलकत्ता जाना था, हमारे प्रधान मन्त्री पन्त जी का एक सन्देश मेरे पास आया कि कम- से-कम एक रोज के लिए सब से मिलने के लिए मैं लखनऊ रुकुं । मैंने कबूल कर लिया कि एक रोज के लिए आऊँगा। लेकिन मेरा जी आज भी दिल्ली में पड़ा है, क्योंकि आजकल वहाँ इतना काम रहता है कि हम वहां से हट नहीं सकते। तो भी मैं आया हूँ और आप लोग मेरी कुछ बात भी सुनना चाहते हैं, तो ठीक है कि में कुछ बातें आप से कहूँ। आप का यह लखनऊ शहर हमारे मुल्क का एक बहुत पुराना शहर है, और यह हिन्दू और मुसलमान दोनों की मिश्रित कल्चर ( संस्कृति ) का एक केन्द्र स्थान है । इस शहर की पुरानी बातें हम सदा सुनते रहते हैं। लखनऊ की पुरानी निशानियों को देख कर हम मगरूर भी होते हैं। पिछली आजादी