पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/३५

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३० भारत की एकता का निर्माण की लड़ाई में इस शहर का जो हिस्सा है, जो इतिहास है, वह देख कर भी हम मगरूर होते हैं। साथ ही आज तक हम इस बात को याद करते हैं कि इसी शहर में से यह बात निकली थी कि हम हिन्दू और मुसलमान एक कौम नहीं हैं, एक नेशन (राष्ट्र) नहीं हैं, एक प्रजा नहीं है, हमें अलग-अलग हिस्सा करना चाहिए। यहीं कहा गया था कि हमारी जबान अलग है, हमारी संस्कृति अलग है, हमारा सब प्रकार का काम अलग-अलग है, इसलिए हमें अलग होना चाहिए। हिन्दोस्तान के सारे मुसलमानों के ऊपर ज्यादातर लखनऊ के मुसलमानों का ही असर पड़ा और पड़ता रहा । दूसरी ओर हमारे जो नेशनलिस्ट ( राष्ट्रीय ) मुसलमान थे, वे भी इसी प्रान्त के थे। उन लोगों ने काफी विरोध किया और काफी मुसीबतें उठाई । हिन्दुओं और नेशनलिस्ट मुसलमानों में बहुत मुहब्बत थी और आज भी है । वे चन्द लोग हैं और परेशान हैं। उनकी तकलीफ और उनकी परेशानी हम उनके चेहरों पर देखते हैं और तब हमको दर्द होता है। लेकिन हमारे जो भाई मुस्लिम लीग के लीडर थे, उन लोगों ने यह बात सोची कि हमें तो अलग ही होना है और इसी में मुसलमानों का कल्याण है, मुसलमानों को रक्षा । और वे कहते रहे कि हमें 'संपरेट इलेक्शन' (पृथक निर्वाचन ) से कोई फायदा नहीं, उससे हमारी कोई रक्षा नहीं होती। यदि हमको कोई बेटेज ( अधिक सीटें ) दिया, तो उससे भी हमारा कोई काम नहीं होता। इसी तरह से, हमको और छोटी-मोटी चीजे दी जाएँ, तो उनसे भी हमें कोई फायदा नहीं होता । हमको तो हमारा अलग हिस्सा चाहिए। हिन्दु- स्तान के लोगी मुसलमान यही बात कह कर घूमने लगे और उनका काफी प्रचार हुआ । जो नौजवान मुसलमान कालेजों में पढ़ते थे, उन पर भी इन बातों का प्रभाव हुआ और उन लोगों ने मान लिया कि यही बात सही है। हमें कबूल करना चाहिए कि बहुत से मुसलमानों के दिल में यह ख्वाहिश पैदा हुई कि अगर हमारा राज्य अलग हो जाएगा, तो हम स्वर्ग में चले जायेंगे। हम उनकी ख्वाहिश को रोक नहीं सके, दबा नहीं सके और हमारे बीच एक बहुत बड़ी दीवार उठ खड़ी हुई। कांग्रेस का यह सिद्धान्त था कि हम इतनी सदियों से एक साथ रहे, चाहे किसी तरह भी रहे । आखिर बहुत से मुसलमान, अस्सी फी सदी बल्कि नब्बे फीसदी मुसलमान, असल में तो हमारे में से ही गए थे और उन्होंने धर्मान्तर कर लिया था। धर्मान्तर करने से कल्चर कैसे बदल गई? दो नेशन्स कैसे बन