पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/३४६

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मुझे बंगाल का दर्द है फायदा नहीं होगा। इसी प्रकार जो बंगाली नौजवान बेकार निकलते हैं, उनको भी समझाना पड़ेगा कि अब हर प्रान्त में अपनी हुकूमत है और उनका फ़र्ज़ है कि वे उसका साथ दें। पहले बंगाली नौजवान अमलदारी करने के लिए दूसरे प्रान्तों में जाते थे। अब भी अगर वे उम्मीद रखें, कि अध्यापको, प्रोफेसरी के लिए, डाक्टर बन कर, वकील बन कर, या कोई धन्धा करने के लिए वे आसाम में, बिहार में या किसी और प्रान्त में जाएँगे, तो आज वहां के नौजवान भी समझते हैं कि उनको भी मौका मिलना चाहिए। इस तरह दरवाज़ा बन्द हो जाता है और हमारे बीच में थोड़ा-थोड़ा अन्तर पड़ जाता है। हमारे हिन्दुस्तान में यह एक प्रकार की बीमारी है कि प्रान्तीय भावना पैदा हो गई है। हमारी दृष्टि संकुचित हो जाती है, और जो विशाल भावना हमारे हिन्दुस्तान की है कि हम सब भारतवासी हैं, उसे भूलकर हम प्रान्त-प्रान्त के संकुचित क्षेत्रों में फेंसते जा रहे है । उसको हमें रोकना है । आज-कल लोग मांगते हैं कि हमारा प्रान्त अलग किया जाए । बंगाल के लोग भी मांगते है कि हम को यह हिस्सा दिया जाए, वह हिस्सा दिया जाए। वे कहते हैं कि हमारा टुकड़ा पड़ गया, हमारा प्रान्त छोटा बन गया । उसे भी में समझता हूँ और मेरी कोशिश भी यही है कि बंगाल को जितनी मदद की जा सके, उतनी में जरूर करूं। बहुत दिनों से बंगालवाले कहते थे कि हमें बिहार के कुछ जिले दिए जाएं, तो मैंने कोशिश की। यह कोई आसान बात नहीं है । क्योंकि लोगों को समझाना पड़ता है, दूसरे प्रान्तबालों को समझाना पड़ता है, वहाँ की रैयत को समझाना पड़ता है । हमें देखना पड़ता है कि कोई फिसाद न हो । तो आपने देखा कि जो पांच-छ: सौ अलग-अलग राज्य थे, उन सबको हमने एक कर दिया, लेकिन कोई फिसाद नहीं होने दिया। और जिसने फिसाद किया, उसका सिर फूट गया। इसी तरह से बंगाल का मसला भी हल करना हो, तो उसमें आप को मेरा साथ देना चाहिए । मेरे काम में आपको मुसी- बत नहीं डालनी चाहिए । लेकिन एक तो में शारीरिक कमजोरी में फंसा हुआ हूँ। दूसरा हमारे मुल्क में आज जो बड़ी-बड़ी समस्याएँ हैं, उनको में हल न कर सकूँ तो उसका असर भी आपके ऊपर पड़ेगा, और आप और ज्यादा मुसीबतों में फंस जाएंगे। उनको भी हमें हल करना है, और साथ-साथ आपका काम भी करना