पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/७४

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बम्बई, चौपाटी ६५ कि निश्चय कर लो कि स्ट्राइक तो हम कभी बर्दाश्त नहीं करेंगे। तब यह काम होगा। जब तक ऐसा नहीं होगा, तब तक हम गलत रास्ते पर चलते रहेंगे। यह यूटिलिटी सर्विस ( जनोपयोगी सेवा ) है और जाहिर काम के लिए पोर्ट ट्रस्ट है। मजदूरों के लिए ही तो वहाँ अनाज आता है। लोग भूखों मरते हैं, राशन शाप पर अनाज हमें पहुँचाना ही है । मजदूर हड़ताल करके बैठें तो बाहर से आनेवाला अनाज बोट में ही पड़ा रहेगा। तो हम क्या करें ? क्या हम बैठे रहें ? सोशलिस्ट भाई की बात मान लें ? तो हमने मजदूरों की एक नई लेबर फौज भर्ती कर ली, और उनसे कहा कि आप लोगों को काम करना पड़ेगा। इस तरह हमने एक छोटी-सी फौज बनाई है। हमने उन लोगों को भेज दिया कि जाओ काम करो। अब काम तो चलता है। लेकिन अब यह चिट्ठी आई है, तब हमें क्या करना चाहिए? तब मैंने सोचा कि अब एक ही जवाब देना चाहिए कि यह जो मजदूर स्ट्राइक करने गए हैं, उनकी जगह हम दूसरों को भर्ती करनेवाले हैं। उनको निकाल देंगे तो उसका बोझ आप पर पड़ेगा। क्योंकि या तो हमको गवर्नमेंट आफ इंडिया छोड़ देनी चाहिए। बम्बई गवर्नमेंट चाहे, तो छोड़ सकती है, हम नहीं छोड़ेंगे। हम ऐसा नहीं करेंगे। यह बहुत बुरा काम है, यह लीडरशिप नहीं है। इसी तरह की बातों से हिन्दुस्तान का सत्यानाश होनेवाला है। जितने लोग सोशलिस्ट का लेबिल लगाते हैं, वे सब सोशलिस्ट हैं ऐसा न मानिए। जितने लोग कैपिटलिस्टों के दोस्त हैं, उनके साथ घूमते हैं, उन सबको कैपिटलिस्ट का एजेंट कह दिया जाता है, परन्तु उससे काम खतम नहीं होता। लेकिन मैने कलकत्ता में भी कहा था कि मैं सोशलिस्ट का लेबिल तो नहीं लगाता, लेकिन में अपनी कोई प्रोपर्टी ( जायदाद ) नहीं रखता। जब से गान्धी जी का साथ हुआ, तभी से। और मैं भी आपके साथ सोशलिस्ट में था। उससे भी आगे जाना हो तो उसमें मुकाबिला करने को तैयार हूँ। लेकिन हिन्दुस्तान को बरबादी होने के काम में मैं कभी साथ नहीं दूंगा। उसमें आप कहें कि मैं कैपिटलिस्ट का एजेंट हूँ, जो चाहें सो नाम लगाइए, लेकिन में इस रास्ते पर हिन्दुस्तान को नहीं चलने दूंगा । जब तक मैं बैठा हूँ, में ऐसा हरगिज़ नहीं होने दूंगा। मुझे तो बड़ा अफसोस होता है कि हम लोग कहाँ जा रहे हैं। सवाल यह है कि अब हमें क्या करना चाहिए । एक तो हमने हिन्दुस्तान का दो टुकड़ा किया। उसके बाद हमारे मुल्क में यह हालत भा० ५