पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/१०५

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भारतके प्राचीन राजवंश यह कैद कर लिया गया । तदनन्तर नागर्विकाकी सलाह से मरी हुई सेनाको अन्नरसव पीछे जीवित कर दिया, तया नये रजाको faजछी तरह जहमको न सताने और घर्गमार्ग पर चलनेका उपदेश' देकर कल्याणको मैन ईिया । । * विज्ञराय-यति में लिखा है

  • बसवही बन चट्टी ही झपयनी थी ।उसको विज्नड़ने अपनी परेपमान ( अत्रिंवार्हिता री ) बनाई । इसी कारण इसव विमलके राज्यमें इन पदको पहुंचा था । " असी पुस्तक में वय और गिलके देहान्तके विषयमें लिखा है कि “राजा बिज्जल शोर ववके बीच पन्नेि मुडकृनेके वाद, राजाने कोल्हापुर ( सिहारा ) के महामण्डलेश्वर पर चढ़ाई की । घाँसे लौटते समय मार्गमें एक दिन राजा अपने में बैठा था, इस समय एक जङ्गम जैन साधुझा वेष घोरणकर पांथन हुआ, एक फल उसने राजाको नगर किंया । उ घुसे वह फल लेकर राजाने हो, जिससे उस पर चिपका प्रमाव पई गया और उससे इसका देहात हो गया । परन्तु मरते समय राजाने अपने पुत्र इम्माधिन ( दूसरा ज्जिल ) से कह दिया कि, यह कार्य घसचा है, अतः तू ईराको मार डालना । इस पर इम्मडवचलने वसव पकडने जोर जङ्गमको मार हानेकी अशि दी । यह सदर पाने ही कुऍमें गिर कर बसउने मात्रइत्या कर ली, तथा उराकी छी नींझावाने विष औक्षण कर लिया । इस तरह नवीन राजा कौघ शान्त होने पर घन्नबसबने अपने मामा यसवका इप्य राजाके नजर कर दिया । इससे प्रसन्न होकर उसने चैनवसवको अपना प्रधान बना लिया । । । यद्यपि पूर्येक पुस्तके वृत्तान्तोंमें राज्यसत्यका निय काना कठिन है तयापि सम्माः धरान और विनोदचका द्वेष है। उन दोनों नाशा कारण हुआ हो । बिजलदेव पांच पुत्रं ये—मैर ( सोविय ),

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