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भारतके प्राचीन राजवंश-
 

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भारत के पाचीन राजवंश तीसरा विम-सय ११ १२ ( ईसवी सन १८५५) का गोडवाह दर-- गने माइँद गाँव में ।

            ९-कृप्पाराज दूसरी । 
यह पूर्णपाल का छोटा भाई था । उसके पीछे उसकए राज्यका यहि उत्तराधिकारी हुआ । इसके दो शिलालेख भीनमालमें मिले हैं। पहला बिक्रम-संव्त् १११७ ( ईसवी सन १७६१)मावसुदी ६ का और दूसरा विकर्म्-सम्वत् ११२३ ( ईसवी सन १०६६ ) ज्येष्ठ यी १२ का । इनमें यह महीराजाधिराज लिखा गया है। विक्रम-सवत् १३१ (ईसी सन १९६२) के चाहमान चा घामानाबाले देस' यह भूमिपति कहा गया है। इससे  मालूम् होता है कि पूर्णपालके बाद उसका छोटा भाई कृष्णाज वसन्तगट, भीनमाल और किराडूका स्वामी हुआ । इसे शायद मीमने कैद कर लिया था । चाचिंगदेव पूर्वोक्त लेखका अठारवाँ के प६ ३ --
   भूतनु तनयस्तरीय चलप्रसाद मौनइनामचरयुगमईनग्यौ । 
   झुन्पीमतिचल्नुमा मोचयामा क

| गारम्प तिमपि राधा कृष्णद्वैवाभिधानम् ॥

अर्यात्-वीळप्रसादने भुमिदेव्के छरन् पकद्ने के बाहाने उस के पाइर् इतने जोर से दबाये के उसे वडी तक्लीफ् होने लगि । उसने अपने पैर तब् छुदा पाये जब् बदले में राजा कृष्शनि राज्को दखें चौदना स्वीकार किया !

द्विरा शिलाज़में पूरा नाम नहीं है। उसकी जगह उस्के छोटे भाई क्रीश्नराज का हि नाम है । अत अनुमान होता है कि - रीनसे किंकी दूसरी आता इन होगी । (1) EP Irl vul, RC, P, TE, va