पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/१४२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

मालचके परमार। । अर्थात्५ सौ विध्युके पास चली जाय और धीरता गहादुई | पास । परन्तु मुलाकै मरने पर बेचारी सरस्वती निराधार हो जायगी । उसे कहीं जाना ठिकाना न रहेगा । इसके बाद मुझको सिंर काट लिया गया। उस सिरको सुली पर, राजमहल में, खडी कर तैपने अपना क्रोध शान्त किया । जब यह समाचार मालवे पहुंचा तब मन्चियों ने उसके भतीजे भीनफी राहासन पर बिठा दिया। घ्यन्यन्तमणिकारके उसे हुए इस नृत्तान्त मुञ्जकी उत्पत्तिका, सिन्छु ऑखे निकलने और कई पंजइमें चन्द करनेका, तथा भेजकै मारनेका ज हाल लिखा है वह बिलकुल बनाबट्टी सा मालूम होता है। नवसासूसाइचरितका कृत्त पद्मगुप्त ( परिमल), जे भुअॐ दरवारका मुख्य कवि था और न सिन्धुराजके समय में भी जीवित था, अपने क्वायके ग्यारहवें पगमें लिता : पुर काफमात्तेन स्थितेनविकापते । मवबणकिप्यास्य पूर्व दोध्याि निवेशिता ॥ १८ ॥ अर्थात-वाक्पतिराज ( मुन्न ) जज शिवपुरक चला तच राज्पका मार अपने भाई सिन्धुरान पर छह ममा । इससे साफ पाया जाता है कि दोनों भाइपामें वैमनस्य न था, और न सिन्धुराज अन्धा ही था ।। इसी तरह धनपाल पण्डित भी, जो अपन ले । भैन हक्क चारों आऑके मसमें विनाम न था, अग्नी बनाई ४ ल Fuमें लिखता ( १ } fi'। । । हुरित पुन्नने लू ।। ।। लाकर पक्षी ६ बनेका उई।