पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/१४४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

गालदेके परमार। यशस्तिलफ नामक पुस्तकके अनुसार मुअन पगृहमें गडवह नाम काव्य रचना की । परन्तु वास्तव पद काव्य कन्नौज जा अशेवम सभासद् वाक्पतिराजको बनाया हुआ है, जो ईसाकी सातवीं सके उत्तरार्धमें विद्यमान था। पद्मगुप्त लिखता है किं घायपतिराज सरस्वतीरूपी कल्पलताकी जड र फावयका पक्का मिन था । विक्रमादित्य और सातवाहनके बाद | सरस्वतीने इसमें विश्राम लिया था। | धनपाल उसको सच विद्याका ज्ञाता पिता है' से 'यः सर्थविद्माधिना श्रीमुझेन' इत्यादि । | और भी अनेक ने मुनक्की विद्वचाकी प्रशंसा की है।' राषष पापडवीम' महाकाव्यका कर्ता, कविराज, अपने काब्यके पहले सीके अठावें श्लोकमें अपने आश्रयदाता कामदेव राजा लक्ष्मी और विद्याकी तुलना, प्रशसाके लिए, मुकी लक्ष्मी और विद्यासे करता है। मुनके राज्यका प्रारम्भ विक्रम संवत् ११३१ के लगभग हुआ था। क्योंकि उसके जो दो ताम्रपत्र मिले हैं उनमें पहली वि० सं० १०३१, मापद दि १४ (६७४ ईवी) का है। यह उनमें लिया गया। यो । दूसरा वि० सं० १०३६, कार्तिक पूर्णिमा ( ६ नबंबर, १९७९ ईसवी ) का है, जो चन्द्रग्रहण-पर्व पर गुणपुरा में लिखा और भगतपुरामें दिया गया थ । इन ताम्रपत्रों से मुका शव होना सिद्ध होता है । | समापतरनसन्दोह नामक अन्य कर्ता जैनपाटत अमितगतने जिस समय उक्त अन्य बनाया उस समय मुझ वैद्यमान था । यह उस (१) द्विलकमरी, ५० ६ । (५) भनिन्यायोभिनौ यस्य धीमुशादिमती भिदा । पिरसानारिदप तारापति ॥ १८ ॥ सर्ग १ ( Ind. Ant, Yol VI p 51 ()Iod Ant, Vol. XIV, P, 108, Ind Ixx Bp.. , १०१