पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/१८१

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मारतकै प्राचीन राजपश छोटे पुत्र जगदेबफ ३ दिया और अपने बड़े पुत्र रवालको १० व देकर अपने छोटे भाई की शामें रहनेका उपदेश दिया । जनै उपादित्पका देहान्त होगया तत्र पिता शाशानुरारि जम्वेव मंई पर वैश्य ।। जगदेवने १५ नम्। अथामें बर्देश छोड़ा था । उसके बाद उसने १८ वर्ष सिद्धराजकीं ६ की और ५२ वर्ष राज्य करके, ८५ पट्टी उन्नमें, उसने शर हा । उसके पीछे उसको पुन जगवल राज्याई झी ऋों।" यहीं यह कथा समाप्त होती है। इस कथामें इतना सत्य य है। कि जगदेव नामक वीर और उदार प्रकृतिका क्षत्रिय सिद्धराज जयसिंह की सेवामें कुछ समय तक रहा था। शायद् वह उद्यादित्यको पुग्न हो ! परन्तु उद्यायिके देहान्तकें कई २०० वर्ष पछि रुतुझ्ने जगदेवका जो वृत्तान्त लिखा है उसमें वह उसको केबल क्षत्रिय ही लिता है । मह उदयादित्या पुत्र था या नहीं, इस विषयमें वह कुछ भी नहीं लिखता । माने जगदेवी कुलीनता, वीरता और उदारता प्रसिद्ध करने के लिए इस फयाकी कल्पना नृपः परी कर ली हो। इसमें ऐतिहासिक शक्यता नहीं पाई जाती। | उद्यादैत्य के राजाको सेवक न, किन्तु मालवेका स्वतन्त्र राना या, महु के अधीन शुद्ध किल्ला था । महासे दिया है। उसे वशन अर्शनका एक वामपन मिला है। उदयाबियके पीछे उसका पड़ा पुन समय और इसके पीछ दमादेवका छोटा माई नरब गई पर वैठा । परन्तु जगदेव और जगघयल नामके राजे माल्की म्पर की नही बेड़े । इतिहासमै जना पता नहीं । | करके राजा फूळ पुन लासा ( लास्वा फूलाणी ) की पुत्रियों साथ निंदरा और जगदेव सिंघाडी कथा मी अस+व भी इन १३६