पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/१९४

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मालयेके परमार। पालकी तरफ था। कुछ समय बाद बलदेव भी शोधवल द्वारा मारा गया और मालवा एक बार फिर गुजरातमें मिला लिया गया। बल्लालदेवकी मृत्यु का निक अनेक प्रशस्तियोंमें मिलता है । वडनगरमें मिली हुई कुमारपालकी प्रशस्ति पन्द्रहवें श्लॅकमें बल्लालदेव पर की हुई जीतका जिक्र है । उसमें छिपा है कि भल्लालदेव का सिर हुमा२पालके महलके द्वार पर छटाया गया था । ई० स० ११४३ ॐ नवंबर कुमारपाल गद्दी पर धेठा, तथा उल्लिखित बड़नगरवाङी प्रशस्ति ई० स० ११५१ के होम्यरमें ले गई। इससे पूर्वो वातका इस समय वैचि होना सिद्ध होता हैं। | कौमुदी लिंखा है कि मालवेकै चल्लालदेव और दक्षिणके मद्धिकानको कुमारपालने हया । इस विजयवा ठीक ठीक हाल ६० स० ११६९ के मनाथ में मिलता हैं । उदयपुर (ग्वालियर) में मिले हुए चौलुक्याँके लेहोस भई इसकी दृढ़ता होती हैं। | उदयपुर (ग्वालिँगर ) में कुमारपाङफे से लेस मिले हैं। पहला वि० सं० १२२८(३० स०११६३ ) और दूसरा वि०सं० १९२२ (६० स० ११६५) की। वहां पर एक लेख वि० सं० १२२९ (३० स० ११७२) का अजयपालके समयका भी मिला है। इससे मालूम होता है कि वि०सं० १२२९ तक भी मालवे पर गुजरातवालोंका अधिकार था 1 जयसिंहकी तरह कुमरपाल भी अव-तीनाथ कहलाता था। कहा जाता है कि पूर्वोळखत उन' व घालदेबने बसाया था । वहाँकै एक शिंद-मन्दिरमें दो लेस-सप्ड मिले हैं। उनकी भाषा संस्कृत है। उनमें चावफा नाम है। परन्तु यह बात निश्चय नहीं कही जा सकती है भोजप्रबन्धको कर्ता बवाल और पूर्वेक्त बल्लाळ दोन १५) 5. Ind., . VIII, P, ४00. (३) Ep. Ind, Fol. VIT, t. 200. (३} Ep Ind, Vol. I, P 28, १५१