पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/२

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निवेदन ।




समस्त सभ्य जगत् में इतिहास एक बड़े ही गौरवकी वस्तु समझा जाता है; क्योंकि देश या जाति की भाषी उन्नति का वही एक साधन है । इसके द्वारा भूतकाल की घटनाओं के फलाफल पर विचार कर आगे का मार्ग निष्कण्टक किया जा सकता है। यही कारण है कि आजकल पश्चिमीय देशों में बालकों को प्रारम्भ से ही अपने देश के इतिहास की पुस्रतकों और माहत्माओं के जीवन चरित पढ़ाये जाते हैं। इसी से वे अपना और अपने पूर्वजों का गौरव अच्छी तरह समझने लगते है । हिंदुस्तान ही एक ऐसा देश है कि जहाँ के निवासी अपनी मातृभाषा-हिन्दी में देशी ऐतिहासिक पुस्तकों के न होने से इससे वंचित रह जाते हैं और आजकल की प्रचलित अँगरेजी तवारीखों को पढ़कर अपना और अपने पूर्वजों का गौरव खो बैठते हैं। इस लिए प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य है कि जहॉ तक हो इस त्रुटिंको दूर करने की कोशिश करे।

प्राचीन काल से ही भारतवासी धार्मिक जीवन की श्रेष्ठता स्वीकार करते आयें हैं और इसी लिए वे मनुष्यों का चरित लिखने की अपेक्षा ईश्वर का या उसके अवतारों का चरित लिखना ही अपना कर्तव्य समझते रहे हैं। इसी के फलस्वरूप संस्कृत-साहित्य में पुराण आदि अनेक ग्रन्थ विद्यमान हैं। इनमें प्रसंगवश जो कुछ भी इतिहास आया है वह भी धार्मिक भावों के मिश्रण से बड़ा जटिल हो गया है।