पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/२७०

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सैन-बैंश। वजय बादशाहसे जा मिला । वहाँ पर इन दोनों में पढ़ गन्ध हुई कि | इजराये तुरलको जलमार्गसे न भागने दें। यह घटना १२८० ईसी (विक्रमी संवत् १३३७ ) के करीब हुई यी 1 इसलिए उस समय तक दगुजरायका जर्पित होना और स्वतन्त्र राजा होना पाया जाता है। डाक्टर वामझा अनुमान है कि यह दल्लालसेनकी पत्र या । परंतु राहा लक्ष्मणसेना पर होना अधिक सम्भव है। यह विश्वरूपसेना पुत्र भी हो सकता है। परन्तु अब तक इस विषपका कोई निश्चित प्रमाण नहीं मिला। मनरल कनिहामझा अनुमान है कि यह मूइर ब्राह्मण था। परन्तु भेटी झारिकाओंमें और अनुलफज़लकी आईने अचरी में इसमें ॐनवं लिखा है। । अन्य राजा । प्टकही कारिकासे पाया जाता है कि दनुजरायके पीछे रामबहुमराय, इ मराय, हरिवमय और जयदेवय चन्द्रदीपके राजा हुए । जयदेव कोई पुत्र न था। इसलिए उसा राज्य उसकी कन्याके पुत्र (दौहित्र ) को मिला है। समाप्ति । | इरा समय बङ्गालमें मुसलमानों का राज्य उत्तरोत्तर वृद्धि कर रहा या । इस दिए विक्रमपुरकी सेनवंशी वाला चन्द्रदीप जमश्रापके साथ ही उरत हो गया। राज्य ( 1:14': Utsuory, Vol. 115, F 11. (07.1, A, B, 1871 | f. ta, २-३